तीनटा सम्बन्धपरक कविता

1. नानी

कतेको राग-उपरागक अछैतो
चुप्पे बिलहैत रहलै
अप्पन एकमात्र आमदनी
सूदिक पाइ
हम्मर माम सबहक भरण-पोषण मे,

मुदा
मामा लोकनि
भरित-पोषित भेलाक बाद
भ' गेलथिन एकात

मुदा
ताहि सँ कोनो खास फर्क नै पड़लैक
परिवर्तन बस यैह भेलैक जे
पहिले  खुअबैक पंचटकिया टॉफी
आ आब चारिअनिया लबनचूस,
चुप्पे, मामा सँ नुका कए
हम्मर ममियौत सब के,

मुदा
से कतेक दिन खुऔतैक
बुढ़िया पेलसिम मे
पाइये कतेक दैत छैक सरकार ?

2. दादी

अहाँक पक्का भुलकत रोइयाँ
जखन स्पर्श करत दादी
अहाँक हाथक कंगुरिया आँगुर के,
कियैक त' ई स्पर्श
सिर्फ ओकरे स्पर्श टा नहि छैक
ई दू शताब्दीक स्पर्श थिकैक
जकरा अंगेजने अछि दादी
अप्पन झूर-झमान भेल लटकल
मुदा दपदप करैत चमड़ी मे

दू शताब्दीक दू टा पीढ़ीक मिलान पर
ठाढ़ हेबा सँ पहिने
ओ रहैक एन-मेन हमरे-आहाँ सन,
ओकरो रहैक मनोरथ
जे बाबा आजीवन रखथिन्ह संग
आ ओहो हेतैक ताहि प्रवाह मे प्रवाहित
जाहि मे होइत छथि कोनो सामान्य स्त्रीगण
मुदा बाबा
से नै पुरौलथिन आस,
संग के कहय
अन्तिमों क्षण मे
नहि सामीप्य भेलैक प्राप्त,

आ ताहि दिन सँ दादी
भ' गेल अछि एसगर
मुदा ई बात कहैत नहि छैक ककरो
बेटा सब छथिन पढ़ल-लिखल
मुदा नहिए सन पढ़ि पबैत छथि दादी के

मुदा
दादी पढ़ैत छैक सबटा
दादी गुनैत छैक सबटा
आ प्रायः तकरा बाद
गनैत छैक दिन
मुदा दिन
नहिए बीति रहलैक अछि ओकर,

एहि सब सँ फराक
कखनोकाल हम सुनैत छियैक
ओकर गुनगुनायब
'गेला कन्हैया गोकुल सँ मथुरा'

मुदा काल्हि प्रात मे
ओ पराती नहि गाबि गबैत छल
कोनो हेरायल गीत करुण भास

मुदा से कियैक ?

की आब ओहि कारुणिक गीतक ओहि भास सन
बीतिये जयतैक दादी....!!!



3. माँ

आइ धरि कहाँ केलकैक कहियो
कखनो मुँह अप्पन मलीन,
साबेक जौड़ जकाँ माँक दिकदारी
आ पिताक बेरोजगारी
सदैव रहल लेपटायल एक-दोसरा सँ
एकटा बहुत गहींर आत्मीयताक संग
तेना सन जेना दुनुक बिन
दुनुक निर्वाह होइक कठिन,

धूपदानिक कहकह आगि मे पड़ल स'रड़ सँ
उठैत सुगंधित धुआँ जकाँ माँ हमर
कयने रहल हमरा परिवारक जलवायु सुगन्धित
मुदा हम जनैत छी जे ओ
भितरे-भितरे कोना जरैत-जरैत शेष होइत रहल अंततः,

गरम दूध आ हरदि सँ
स्वास्थ्य ठीक कयनिहारि हमर माँ
आइ-काल्हि फँकैत अछि
भुज्जाक ओजी पर दबाई,
जखन की ओकरे उमीरक ओकर संगी सब
एहिये देशक एकटा विराट महानगर मे
अहलभोरे रनिंग-सू पहिरि रन-रन करैत भेटैत छथि हमरा
प्रायः सब दिनका हमर मॉर्निंग वाकक क्रम मे
हरीतिमा सँ साजल हमरा कॉलोनिक पार्क मे,

ओकर उपस्थितिक भान मात्र करैत रहल अछि ऊर्जस्वित
ओकरे ऊर्जा सँ अरजल गेल हम आ हमर भविष्य
एहि विकट महानगरीय जीवन जीबाक क्रम मे
अप्पन कोठलिक एकजनियाँ ओछओन पर
एकान्त मे अतीत केँ मोन पाड़ैत बिचारैत अछि-
"माँ समाजवादी पिता आ कम्यूनिस्ट पुत्रक बीच
करैत रहल अछि अनंतकाल सँ रक्षा
एहि देशक ढ़नमनायल लोकतांत्रिक घ'र केँ"।

कवि :- गुंजनश्री

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