1. समीना
हम तुम मारे जाएंगे समीना !
निश्चित ही होगी हत्या हमारी
मैं पंडित होकर भी होना चाहता हूँ तुम्हारा
और तुम भी साथ होना चाहती हो मेरे
इसका अंत इस से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता कि
मारे जाएंगे अंततः हमदोनों,
हो सकता है कि तुम्हारे परिजनों के चाकू
मेरे गर्दन को जब धीरे-धीरे सहलायें
तो मुझे उस वक्त याद आयेगी
तुम्हारी मदहोश कर देने वाली आवाज़ में
वो गज़ल
"हुजूर आहिस्ता-आहिस्ता जनाब आहिस्ता"
जिसे अपने एकांत क्षण में
कॉलेज कैम्पस के पिछली चारदीवारी के उस पार
गंगा की खुली बाहों में
घंटों बैठकर कहा-सुना करते थे हमदोनों,
और हो तो ये भी सकता है कि
तुम्हें याद आये मेरी कोई ऐसी कविता
जिसको सुनाते वक़्त अक्सर
झिझकता रहता था मैं
ठीक उस वक्त
जब मेरे सम्बन्धी तुम्हें राह में घेरकर
बार-बार बलत्कृत कर रहे होंगे,
किसी छोटी सी बात को बड़ा बनाने की कोशिश में
जब मैं हार जाता हूँ तुम्हारे स्नेहपूर्ण तर्क से
तो चेहरा उतर जाता है मेरा और कहती हो तुम-
"हारी तो पी के संग"
इसका कोई मोल नहीं होगा समीना
हमारे तुम्हारे परिजनों की आँखों में,
याद है कई बार हॉस्टल के मेरे रूम में
महज़ छोटी-छोटी बातों पर
मेरे कई तकियों को असमय शहीद कर दिया था तुमने,
मैंने कई बार कोशिश की थी कि तुम्हें बताऊँ
कि मेरी दादी ने दिये थे मुझे वो तकिये
जब मैं गाँव छोड़कर
पहली बार शहर आया था
लेकिन नहीं बता सका,
जानती हो क्यों ?
क्योंकि मुझे बेहद प्रिय लगता था
तुम्हारे चेहरे पर इठलाता वो हसीन झूठा गुस्सा,
मगर मैं नहीं जान सका था कि
हम दोनों को देनी होगी अपनी-अपनी जान
अपने प्रेम को गढ़ने में,
जानती हो समीना
आजकल सबसे सस्ता होता है
किसी की जान ले लेना,
और इस तरह सस्ते में निपट गए हम दोनों,
सुनो !
इस समय जब कि जी रहे हैं हम दोनों
अपने-अपने हिस्से की मृत्यु,
मुझे बहुत याद आ रही हो तुम समीना,
मुझे पता है तुम्हें भी हो रहा होगा
ऐसा ही कुछ-कुछ...
2. गुलों में रंग भरे..
अपनी प्रेमिकाओं से मिलने से पहले
जिन्हें होती है बिछुड़ने की घबराहट
उनके लिए कहना है कि
उन्माद आवश्यक होता है प्रेमी के लिए,
और उन्माद का क्या है
किसी के भी आँगन को
कभी भी महका सकता है
ठीक वैसे ही जैसा अबके
महका है मेरा आँगन
जब सूखे होंठों के रंग बदलकर सुर्ख होने लगेंगे
एक बार बस जीभ फेर देने से,
जब आखों के बीच से झाँकेंगी
परिवर्तन करने और होने की कशमकश,
तब बहार के आँखों में आँखें डालकर
बाहर से भीतर तक परिवर्तनशील होकर
चिल्लायेगी अपनी प्यासी माटी
तब मैं सबसे नज़र बचाकर कहूंगा तुमसे
कनफुसकी के क्रम में -
'क्रांति एक रंग है जानाँ
मैं चाहता हूँ कि अबकी
इसी रंग से खेलूँ तुम्हारे संग
ताकि भींग सके तुम्हारी चिर-प्रतीक्षित इच्छा और
अंत हो सके मेरे अंधकारमय युग का...
अंत हो सके मेरे अंधकारमय युग का...
3. उसने कहा था
उसने कहा था मुझे जाना है छोड़कर तुम्हें
मैंने उसपर लिखी अपनी सारी कविताएँ फाड़ दी,
उसने कहा
मुझे लड़ना है तुमसे
मैंने उसे अपनी कविताओं के पात्र में खड़े होने दिया
और वे पात्र
लगातार लड़ते रहे हैं मुझसे,
उसने कहा
बदला लेना चाहती हूँ
मैंने अपनी एक दीर्घ कविता के अंत में लिखा-
'मृत्यु एक जंग है आत्मा के ख़िलाफ़'
उसने कहा
मुझे फिर लौट आना है तुम्हारे पास
विस्मृत होने की क्रिया से ठीक पहले
मैं अब पूरी करने बैठ गया हूँ
उसके नाम की अपनी कई अपूर्ण कविताएँ...
कवि - गुंजनश्री |
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