दूटा कविता

1. ओहि समयक बीचो-बीच

जखन भोरक मुँह पर सँ 
उठबैत अछि घोघ सुरुज  
देखनगर होइत अछि अन्तिम साँस लैत एकटा राति
तखन अहाँक घुरि अयबाक बाट तकैत
प्रायः निसभेर होइत अछि समय
एहि मातल समयक बीच
नै अहाँ मातैत छी हमरा मे
ने हम अहाँ मे,
अपन-अपन समय केँ मोन पाड़ैत हमरालोकनि
हेरा जाइत छी एहि अकादारुण समय मे
ओम्हर ​​
ठीक एहने सन समय मे 
कियो मातल रहैत अछि 
अपन अभिमान भरल राज-हँस्सी मे
जखन कि ओकरा पोछबाक छलैक 
सहस्त्रों लोकक नोर  
अनबाक छलैक घनेरो फुफरी पड़ल ठोर पर
कम सँ कम एकटा टटायलो हँस्सी,

एहि ओधबाध भेल समय मे
अनिश्चित तृप्तिक छुच्छ इच्छा सँ आप्लावित भेल लोकक
राजसत्ताक कुटिल सिंहासनक पौआ सँ 
बहराइत कठहँस्सीक' निर्मम संदेशक बीच
हमर आदिम इच्छा अहाँके मोन पाड़ैत 
कहय चाहैत अछि जे
आब बड्ड अबेर भेल 
घुरि आउ पुनः एक बेर
कि आब हमरालोकनिक चीत्कारक बेर तुलायल अछि
कि फुफरी पड़ल ठोर पर आब
हँसबाक लेल प्राण अकुलायल अछि...


2. पिता 

हबोढेकार भेल हमर जिनगीक त्रिज्या जखन वक्र बनि
नहि अरजि पबैत अछि कोनो वृतक क्षेत्रफल हमरा लेल
तखन ओहि वृतक केन्द्रबिन्दु बनित्रिज्या केँ सोझ करैत
एकटा नमहर परिधि बनि अभरि जाइत छथि पिता
अप्पन गम्भीर अभयदानी मुखमुद्राक संग,

पिता हमर नै भेटैत छथि कोनो खुरपीक बेंट सँ
ठेल्ला पड़ल हाथक भकभक्की मे,
ने भेटि सकैत छथि
कोनो पझायल मोनक स्मृति मे तेना
जेना निशाभाग राति मे गाछ सँ 
अस्थिरे-अस्थिरे झरल धरतीक छाती पर
भेटैत अछि भोरे-भोर अलसायल सिंगारहार,

कातिकक रातिक घनघोर बरखाक मे
हमरा पैरक नीचाँ दाहबोह भेल धरती पर
एसगर भीजैत हमरा माथ परहक छत्ता जकाँ तानल छथि पिता
हमर एकांतक सृजनधर्मी पीड़ा
हमरा कविताक खुट मे बान्हल रैजकीक’ संगीत मे
खन-खन करैत गतानल छथि पिता।
गुंजनश्री

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