श्री अजित आजाद -‘चान पर घर बनतै। घरमे लोक रहतै। लोक मुदा कतयसँ आओत? कोना केँ आओत?’ मिसरजी चिन्तामे। यादवजी चिन्तामे। खान साहेब सेहो चिन्तामे। तीनू वैज्ञानिक चिन्तामे। यादवजी मौन तोड़लनि। कहलनि- ‘लोक आओत धरतीसँ। जेना हमसभ अएलहुँ।’ खान साहेबकेँ सेहो फुरेलनि। कहलनि- ‘लोक आओत यानसँ। जेना हमसभ अएलहुँ।’ मिसरजीमे कोनो हलचल नहि। हुनक चिन्ता नहि कमलनि। खान साहेब …
आगू पढू...डॉ. कमल मोहन चुन्नू कोनहु विशेष संदर्भ मे कोनहु कवि किंवा हुनक कविताक प्रसंग विचार करबाकाल कविक रचना, विचार आ हुनक वैचारिक वक्तव्य तीनू महत्वपूर्ण होइत अछि। कविक वैचारिके स्थिति अपन विभिन्न अनुकूल अंगोपांगक संग अन्यान्य दैशिक-कालिक सहयोगी स्थितिक आश्रय ग्रहण करैत, शिल्प-शैली-भाषा प्रभृति तत्वसभक समर्थन पाबि कविताक रूप धारण करैत अछि। रचना-प्रक्रियाक शृंखलाक रूप…
आगू पढू...ठोस प्रश्न ई नहि जे कविता गामक अछि आ कि शहरक अर्थात् कविताक केन्द्रीय कक्ष मे गाम अछि किंवा शहर। ठोस प्रश्न ई होइछ जे ओहि गाम आ कि शहरक कविता मे जीवन कतेक अछि, जीवन सँ कविताक कतेक सम्पृक्ति छैक, संघर्ष सँ कतेक संयुक्त छैक। जीवनक तत्व कविताक जीवित रहबाक प्रमाण बनैछ आ संघर्षक तत्व कविताक जागृत रहबाक। अभिप्राय जे कविता केँ ने त’ मृत होयब अपेक्षित आ ने निस्तेज होयब अभीष…
आगू पढू...पहिल पड़ाव : छाड़इत निकट नयन बह नीरे साहित्यमे हमर प्रवेश भेल नाटक बाटे। प्रारम्भ हम नाटकेसँ कयल। पटनाक मैथिली रंगमंचसँ। प्रायः 1990-91 सँ। अभिनयक रुचि अवश्य छल मुदा से प्रधान नहि। नाटकक अन्य पार्श्व-सहयोगी तत्वसभ आकर्षित करैत छल। ताहूमे एकर संगीतपक्ष सर्वाधिक। नाटकक साहित्य आ संगीत दुनूक अपन-अपन भाषा छैक। एहि दुनूक अपन-अपन सौन्दर्य-प्रभावादि आ सं…
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