1. रहना नहीं देश वीराना है मीत ! कोना रहब पार लगैत अछि ओहि नगर मे जाहि ठामक सुरुज गछारल हो मोन झमारल हो किरण जे अबैत हो चानि पर गिरहथ विर्त हो लगेबा लेल ताहि पर रंग-बिरंगक फिल्टर झूर-झमान होइत लोक जतय बाट तकैत हो दिन घुरि अयबाक, झुझुआन होइत जाइ जतय सरोकारक अनिवार्य मुदा हेराइत संस्कृति , लतखुर्दन कयल जाइत हो जतय लोकतंत्रक सबटा गुण-धर्म आ एहि सभ पर …
आगू पढू...‘समकालीन कथा’, ‘कहानी’ आ ‘समांतर कथा’ एक मानल गेल अछि। समकालीन कथा मे कोनो नव आ स्पष्ट विभाजनक रेखा नहि खिंचल जा सकैछ। ‘समकालीन’ शब्द सँ ‘नव’ ‘समसामयिक’, ‘आधुनिक’ वा ‘वर्त्तमान’क क्रियात्मक बोध होइत अछि। दोसर शब्द मे इहो कहल जा सकैछ जे-‘‘समकालीन अर्थात् ‘अद्यतन’, ‘अधुनातन’, ‘अत्याधुनिक’ तथा ‘नवता’ आदि। कखनहुँ-कखनहुँ समकालीन कथा कहानीक स्थान पर ‘सचेतन’ कहानी ‘सहज’ कह…
आगू पढू...श्री सुकान्त सोम सुकान्त सोम मैथिलीक एक विरल कवि छथि, आ हुनका कविता पर बात करब मैथिली काव्येतिहासक एक दुर्लभ अध्याय पर बात करब थिक। मुदा, एहि मे समस्या छैक जे अपन कवि-निर्मिति पर, अपना सोचक काव्य-परिदृश्य पर आ कि अपन कविता-प्रतिमान पर हुनकर अलग सं कोनो लेखन नहियेक बराबर हमरा लोकनि लग उपलब्ध अछि। दोसर, सुकान्त सन विद्रोही साधक-कवि पर जाहि व्यापकताक संग समीक्षा-वि…
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