मैथिली कविता मे नव्यतम नाम छथि प्रियरंजन झा। दरभंगा जिलाक दड़िमा गामक निवासी आ सम्प्रति निजी विद्यालय मे शिक्षक प्रियरंजन झाक कविता मे विडम्बनाजन्य स्थितिक पड़ताल आ ओहि सँ भिड़त करबाक नैतिकता स्पष्ट देखाइ देत। स्थिर-चित्त सँ लिखबाक क्रम मे ई रचनाकार अपन चौबगली नज़रि खिरबैत चलैत छथि। प्रायः तेँ, हिनक कविता मे आयातित चित्र-बिम्ब आदि नहि भेटत। विषय-वैविध्य सँ भरल हिनक कविता…
आगू पढू...1. प्रवासी पेट जखन भारी पड़य लगैत छैक प्रेम पर त' डेग स्वतः निकलि जाइत छैक दानाक ताक मे ट्रेन छोड़ैत चलि जाइत छैक स्टेशन आ छूटल चल जाइत अछि अपन माटि-पानि , गाछ-वृच्छ, घर-दुआरि स्टेशनक अंतिम ईटा धरि आबि ठमकि जाइत छथि संगी-साथी भाय-बहिन, माय-बाप आ बाबा-बाबी आ नुका लैत छथि अपन-अपन नोरायल आँखि संग मे लेने चलि अबैत छी मनक पौती मे ओरिआओल स्मृति ज…
आगू पढू...बाबा यौ...गांधीजी केँ अहाँ देखने छियै? देश मे जखन सगरो अंगरेजक आतंक छल त’ अपनो गामक लोक डेराएल रहैत छल? एत्तहु ओ सभ जुलुम करैत छल ? अहाँ कतेकटा रही जखन देश गुलाम छल? अहाँ लड़ाइ कियैक नै केलियै ? नेनहि सँ अहीँ सभ जकाँ हमरो साहित्य सँ इतिहास धरि मे गुलामी सँ अजादी धरिक खिस्सा पढाओल गेल । नाना प्रश्न नचैत रहैत छल । प्रश्नक अंबार आ जवाब देनिहार पितामहटा । जखन कखनो अजादीक …
आगू पढू...आधुनिक मैथिली कविताक आरम्भ मुख्य रूपसँ परम्परा आ रूढ़ि पर प्रहार करैत भेल अछि । तैं एहि कविताक विरोध अथवा विद्रोह स्वर-प्रधान हैब स्वाभाविक थिक । मैथिलीक विरोधक कविता अनेक-अनेक स्थापनाक विरोध करैत अछि । जनताक दुःख-दैन्यसँ द्रवित विरोधक कविताक मानब छैक जे सामाजिक, राजनीतिक आ धार्मिक स्थापनाक विरोधसँ जनताक पीड़ा मेटा सकैत अछि । एहि लेल समाज, वृहत्तर समाज, जे …
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