आदित्य भूषण मिश्रक किछु कविता

1. प्रवासी
पेट जखन भारी पड़य लगैत छैक प्रेम पर
त' डेग स्वतः निकलि जाइत छैक
दानाक ताक मे

ट्रेन छोड़ैत चलि जाइत छैक स्टेशन
आ छूटल चल जाइत अछि
अपन माटि-पानि , गाछ-वृच्छ, घर-दुआरि

स्टेशनक अंतिम ईटा धरि आबि
ठमकि जाइत छथि संगी-साथी
भाय-बहिन, माय-बाप आ बाबा-बाबी
आ नुका लैत  छथि
अपन-अपन नोरायल आँखि

संग मे लेने चलि अबैत छी
मनक पौती मे ओरिआओल स्मृति
जकरा देखि नै जानि कतेक बेर बीच ऑफिस में
पीबि लैत रहल छी अपनहि नोर

समय अपन चालि चलैत कहैत अछि
ई लिय' शह
आ अपना लोकनि
अपन-अपन मात बचयबाक
युक्ति सोचय मे लागल रहैत छी
अनवरत, अनंत काल धरि, जानि नै कहिया सँ...

2. कविक लालसा
हमर कविताक पाँती पहिल थीक ई
ज' कही नीक लागल त' आगू बढ़ी
नहि त' छोड़ब अपन जिद ने कविता लिखब
मुदा चिंता तखन अछि जे की हम करब

किछु काजो करबा मे त' नहिए सकी
त सोचलहुँ जे बैसि थोड़े कविते लिखी
कविता लिखब आब भारी त खेल नहि
हमरा कहियो बेसी दिककत त भेल नहि
किछुओ हो दस बीस पचास शब्द ठूसल हो
कविताक अर्थ भले कविता सँ रूसल हो

हे कविता कतेक लिखब चालीस पचास
आ पृष्ठहुँ बड़ बेसी त सयक आसपास
आ तै पर ज' आमुख विधायक जी लीखि देताह
हमरा प्रशंसा मे दू आखर टीपि देताह
जे सद्यः सरस्वतीक जिह्वा पर बास छनि
मैथिल समाज केर हिनका सँ आस छनि

फेर लक्ष्मी केँ अयबा मे कोनो टा भाँगट नहि
जे ओ पढ़त से त' एक्कहि टा माँगत नहि
हे पाँच सय नहि चारिए सय प्रति जँ बिका जायत
एहि अदना सन कवि केँ त' जीवन उद्धार हैत
टाका जुनि पुछू पाग डोपटा सम्मान भेटत
कवि लोकनिक पाँती मे आगाँ ई नाम भेटत

त' आज्ञा भेटल हमरा आगाँ बढ़बाक लेल
पब्लिशर तैयार अछि पोथी छपबाक लेल
पोथी केर आउटलुक डिजाइनो कमाल अछि
पब्लिशर मुदा एहि चिंते बेहाल अछि

जे लोके नै कीनत त छापियो क' होयत की
घासे जँ मित्र तखन घोड़ा फेर खायत की
तेँ जेबी मे टाका जँ अछि त' तैयार रहू
नीक एक पोथी पढबा केर नियार करू
पोथी सजिल्द कूट लागल नफीस रहत
आ मूल्य सेहो बेसी नहि चारि सय पचीस रहत

3. अंतर्द्वंद
हम जा रहलहुँ अछि कतय सएह नहि बूझि रहल छी
अपनहि अन्तःमन सँ सदिखन जूझि रहल छी

अपने विचार अगले क्षण मिथ्या बुझा रहल अछि
तेँ हमरा आगाँ पाछाँ नहि सुझा रहल अछि
बैसल छी सोचबा लेल किछहु नहि फुरा रहल अछि
सबटा विचार मनहि केँ भीतर घुरघुरा रहल अछि
हम किदन-कहाँ छी बाजि रहल से बूझि रहल छी

प्रकृति संग मनमानी देखि अचंभित छी हम
प्रकृतिक पलट प्रहार सोचि बड़ विचलित छी हम
एकसर की क' सकबै तेँ चुपचाप रहै छी
मानवकृत अत्याचारक सब अभिशाप सहै छी
क्यौ ने सुननिहार अछि व्यर्थे भूकि रहल छी

लोकक देखि तमाशा मन अकबका रहल अछि
संबंधोक विचार ने तेँ  सकपका रहल अछि
नैतिकता केर ह्रास देखि छटपटा रहल अछि
आगाँ केर परिणाम सोचि कपकपा रहल अछि
हम बताह छी वा ओ से नहि बूझि रहल छी

4. परिवर्तन
आब समूचा दुनिया ई पहिने सँ अछि आगाँ बढि गेल
आइ फेर मुनचुन बाबाक शुरू भेलनि भाषणक रेल

ओ कहलनि हम गामे सँ दरिभंगा पएरे चलि आबी
भिनसर मे सबसँ पहिने प्राती गबैत छलथिन बाबी
आब लोक अछि गुडुकि रहल से सबटा अछि चक्का केर खेल
आ एहि सीडी कैसैट युग मे कियै प्रतीक्षा भिनसर लेल

पहिने लालटेन वा डिबिये सँ चलि जाइत छल सब काज
पहिने लिखल जाइत छल चिट्ठी से पहुँचै छल मास बाद
आब मरकरी केर इजोत सँ घर आँगन अछि जगमग भेल
आ एहि टेलीफोनिक युग मे अमरीको कोनटे लग भेल

पहिने दियाबातीक राति मे छल लगैत दीपक कतार
आ फगुआ मे भीजि जाइत छल रंगहि सँ सब दोस-यार
आब दीपक आसान पर बैसि झालरि आ फटक्का गेल
आ एहि इंटरनेटी युग मे खेला लेत फगुआ ईमेल

5. व्यथा
हम कोना क' हँसी हम ई बाजी कोना
हमर नोरो सुखा गेल कानी कोना ?

हमरा दिनक इजोतो अन्हारे लगय
हम जे सोनो उठाबी त' माटिए बनय
हमहूँ नचितहुँ कने से जखन मोन हो
हमर घुघरू हेरा गेल नाची कोना?

माछ दहियो सँ जतरा सुजतरा न हो
हम त' डेगो उठाबी जे खतरा न हो
हमहूँ गबितहुँ कने से होअय लालसा
कंठ स्वरहीन भ' गेल गाबी कोना ?

फूलक बीज रोपी त' काँटे उगय
बात केहनो मधुर जग केँ कडुए लगय
हमहूँ छुबितहुँ गगन होइ इच्छा प्रबल
छत जँ बाँचल न हो नभ केँ छूबी कोना ?

6. दुनियादारी नहि बूझि सकल
एक दिन हमरा छल भेट भेल
संसारिक आपाधापी मे रहितहु ओहि सँ निश्चिंत
सुगमता सँ जीवनपथ पर चलैत
अजगुत स्वभाव केर धनी एकटा एहन लोक
जकरा देखितहि ई भेल जे संभवतः
यएह कल्पना रहल हेतनि भगवानक
मानवक रचनाकाल मे

निश्छल,पवित्र छल गाय जकाँ
कोमल हृदयी छल माय जकाँ
ओ निर्मल छल निर्झर जल सन
व्यक्तित्व समूचा दर्पण सन

ओ शांत सुदूर देहात जकाँ
उपियोगी केरा पात जकाँ
ओ पावन चारू धाम जकाँ
आ मीठ स्वभावे आम जकाँ

नहि ओझरायल जट्टा सन छल
नहि मधुमाछिक छत्ता सन छल
नहि धूर्ते छल सियार जेकाँ
नहि निष्ठुर पूषक जार जेकाँ क

अपना केँ सधने, योगी छल
दुनियाक नजरि मे रोगी छल
सदिखन सबठा सत्कार करय
निस्वार्थ सभक उपकार करय 

बस एक्कहि टा छल एब मुदा
नहि अर्थ प्रतिष्ठा लूझि सकल
दुनियादारी नहि बूझि सकल

7. विवशता
ओ जखन पहुँचल छल
जीवनक ओहि मोड़ पर
जाहिठाम पसरल छलैक
युवावस्थाक सुगंध
आ जाहिठाम सँ फुटकैत छलैक अनेक बाट

ओकरा
नहि भेल छलैक देरी
निर्णय लएबा मे

चट द' ध' लेने छल पोथीक बाट
ओ पढ़ि गेल छल
गाँधी आ भगत सिंहक कथा
आद्यांत स्वतंत्रता संग्राम
आ चाटि गेल छल अनेक रास ‘रेवोल्यूशन’
ओकर उत्पत्ति सँ अंत धरि

आब स्पष्ट भ' गेल छलैक ओकर नजरि
देखा रहल छलैक समाज मे पसरल अनेक भेद

विचारलक जे
क्रान्ति करत , लाठी खायत , धरना देत ,जहल जायत
नहि करत चाकरी कोनो सरकारक
आ ने पकड़त कोनो धन्ना सेठक पैर

मुदा तखनहि स्मृति सागरक लहरि जकाँ
आबि ओकरा भिजा जाइत छैक

मन पड़ि जाइत छैक
बाबा-बाबीक सजल आँखि
माइक दवाइ बिनु खाली शीशी
बहिनक बियाह लेल गेल बाबूक कर्ज
ओरियानक नाम पर राखल मनोरथ

ओ थम्हि जाइत अछि , आ
राखय लगैत अछि  भीजल मन सँ
चौपेति क'
अपनहि हाथे ईस्त्री कयल अपन ओ क्रान्ति

8. कोरोना
छल मनुक्ख आतुर लड़बा लेल प्रकृति संग कोनहु रन मे
सबटा कबिलतिक दाबी ध्वस्त भेलहि एक्कहि छन मे

सगरो विश्व पसरि गेलैक अछि रोग आसुरी आइ तेहन
अपनहि शहर बजार लगैए जेना कोनो हो निर्जन बन
कोरोना केर भय सँ दुनिया सुटकि गेल अछि आँगन मे

एखन सेहन्ता होइत अछि जे  चिड़ै चुनमुनी रहितहुँ हम
पाँखि अपन पूरा पसारि आकाश भ्रमण क' सकितहुँ हम
आइ सोचै छी कतेक कष्ट पिजड़ाक चिड़ै केँ हेतै मन मे

जँ भेटितथि भगवान पुछितियनि कोन कर्म केर सजा देलहुँ
की बिगाड़ने छलहुँ अहाँक जे एहि जाल मे फसा देलहुँ
जानी नहि की की देखबा लेल और बचल अछि जीवन मे

आदित्य भूषण मिश्र मैथिलीक युवा कवि छथि । मुक्त-उन्मुक्त स्वभावक लोक आदित्य संप्रति दिल्ली रहैत अछि आ बहुत रास काज करैत छथि । जेना ? जेना कि फ़िल्मक स्क्रिप्ट लिखैत छथि, शार्ट फ़िल्म बनबैत छथि, देश भरि मे घुमैत छथि, आदि-आदि । त' से जे आदित्य एखन अपने लोकनिक सोझाँ छथि । एतय हिनक छन्दयुक्त आ छन्दमुक्त कविता सब पढ़ि  नीक-बेजाय हिनक फेसबुक प्रोफाइल  https://www.facebook.com/adityabhushan.mishra पर कहल जा सकैत छनि ।


कवि : आदित्य भूषण मिश्र

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