प्रिय रंजन झाक किछु कविता

मैथिली कविता मे नव्यतम नाम छथि प्रियरंजन झा। दरभंगा जिलाक दड़िमा गामक निवासी आ सम्प्रति निजी विद्यालय मे शिक्षक प्रियरंजन झाक कविता मे विडम्बनाजन्य स्थितिक पड़ताल आ ओहि सँ भिड़त करबाक नैतिकता स्पष्ट देखाइ देत। स्थिर-चित्त सँ लिखबाक क्रम मे ई रचनाकार अपन चौबगली नज़रि खिरबैत चलैत छथि। प्रायः तेँ, हिनक कविता मे आयातित चित्र-बिम्ब आदि नहि भेटत। विषय-वैविध्य सँ भरल हिनक कविता आमजनक पीड़ा केँ स्वर दैत अछि आ रोमान मे गेने बिना सहज-सरल प्रतिपक्ष रचैत अछि। 

विगत दू-तीन वर्ष मे अध्ययनशीलता, लेखनजन्य अभ्यास आ साहित्यकार लोकनिक संगति-संवादक कारणे हिनक कविता मे परिपक्वता आ निखार आयल अछि। एतय प्रस्तुत अछि हिनक आठ गोट कविता, जाहि मे उपर्युक्त तथ्यक आकलन कयल जा सकैत अछि।                     
     अजित आजाद
                         

1. बाट पर मरैत लोक

दुर्घटना/हत्या होयब 
बाटक नियति अछि
नित्तह होयते रहैत अछि अकालमृत्यु
कखनो गाड़ीक बेसम्हार वेग सँ,
तँ खन डकैतक आक्रांतमति सँ
ओत्तए जकर मृत्यु देखार भ' जायत अछि 
से बनैत अछि ब्रेकिंग न्यूज
जाहिसँ ककरो होयत अछि लाभ
केओ चमकबैत अछि अपन व्यक्तित्व
मुदा किछु लहास/हुकरैत केँ रातिए मे
उठा क' ल' जायत छै जंगली पशु
फेर नोचि-नोचि क' खायत छै माउस
आ बाँचल हड्डी सेहोकुक्कुर चाटि क' 
माटि मे मिला दैत अछि

तहन एखन जे सड़क पर
बिनु गाड़ी आ हत्याराक मरि रहलैए लोक
तकर के लेतैक जिम्मेवारी?
कारण, कहि रहलैए हुकुम-
जे सब मस्त छै
जकरा सिरिफ सुनायत छै 
झालि आ मर्सियाक आवाज
तखन के सुनतै ओकर चीत्कार?
ओ तँ नेपथ्य मे बैसिक' बना रहलैए योजना
कोनो दिन खैरातक नां पर
सूँघा देतैक हजार दू हजार
ओहुना भुखल लोक केँ
एहि सँ बेसी चाहबो की करी भाइ!
आ ओ मच्छर जकाँ 
चुसैत रहतै कने-केने शोणित
देश केँ बीमार, बहुत बीमार बनएबाक लेल

2. अनचिन्हार खिस्सा

जहिया घरे सँ 
दुरगज्जन भ' क' पहिल बेर 
शहर जएबा लेल विदा भेल रही
गामक सीमा नाँघैत काल
कोनो अदृश्य-आर्त्तनाद स्वर
नहुए सँ पूछने रहए 
कत्तए जायत छह?
आ हमर पैर थकमका गेल रहए
तैयो हम अन्हचिन्हार बाट पर
अपन बढ़ैत डेग केँ
नहि रोकि सकल रही
कारण, भुख सँ तड़पैत
मरि सकैत अछि मनुक्ख
मुदा जखन केओ ओकर पैरुख पर
क' दैत अछि प्रश्न ठाढ़
तखन पोरे-पोर मे भोंकाएल काँट रहितो
अक्खज भ' जीवाक स्पृहा
कहियो कम नहि होयत अछि

तेँ हम कतेको जंग लागल स्वप्न केँ
पाथर पर घसि-घसि क' चमकएबा लेल
महानगर मे पँहुच गेल रही
जत्तए भेटलाह हमर जिगरी यार
पान गलोठि डेरा विदा होयबा लेल
गाड़ीक प्रतीक्षा मे दूनु गोटे रही ठाढ़

हम जे ठाढ़ रही
ओ कहादनि गोल चक्कर रहै
जकर फाँस मे फँसि क' 
छनहि मे छटपटायत हाजारो उमेद
दम तोड़ि रहल छल
हमर मनःस्थितिक थाह लैत मित्र कहलनि-
घबराउ जूनि, ई शहर अछि
एत्तय नित्तहु बहुत किछु हेरायत अछि
कतेको बेर फेंकल, छीनल आ मचोड़लो जायत छै
जाँघक भुख, बूढ़क लाठी आ जुआनक सेहन्ता

हम उतारा दैत कहलियन्हि-
ई जरूरी नहि कि
हर बेर दुर्घटना नगरक 
कोनो चिन्हारे ठाम पर होअओ
ककरो भरोस केँ थकचुन्ना करबाक अनचिन्हार खिस्सा
उत्सव सँ सजल गामक 
कोनो घरक एकटा कोनटा मे
ढ़ोल पीपहीक संग सेहो लिखल जा' सकैत अछि
एकर बाद एक-दोसराक आँखि मे 
लिखल भाषा पढ़बाक करैत रहलहुँ प्रयास
कि हमरा लेल शहर नव अछि वा
हुनका लेल गाम पुरान भ' गेलनि

3. नव सृजनक स्वर

हमर जिनगीक सहारा
जेठक तपैत रौद मे
घाम चूआ नहि 
शोणित जरा' क' अरजल
दू धुर जमीन पर 
एकटा फुसक घर अछि
मुदा आइ अनचोके
हम दुखक अन्हार खोह मे छी
जकर आतुर पानि
कतेको भयंकर सोच लेने
हमरा दिश बढ़ैत च'ल आबि रहल अछि

सुख होयत पानिक फुहार
जानि नहि कखन
बदलैत मनुक्ख जकाँ
बदैल अपन बेवहार 
करए लागल अछि बेहिसाब बदमस्ती
जेना दुख सँ छटपटायत जीवन केँ देखब
एकरा लेल उत्सव होइक

तेँ हम 
एकर सबटा बुधियारी केँ अकानैत
शापित सभ्यताक पाँती मे ठाढ़ भ'
अंतीम लहरिक प्रतीक्षा मे
एकटा बन्न दरबज्जा पर 
पहरा द' रहल छी
एहिठाम नै नाह अछि 
आ नै हवाजहाज 
सिरिफ लोक चिचिया रहलैए
एक-दोसराक दर्द मे
कारण, ओकरा बुझल छै
कि संगोर भ' उठाओल गेल कोनो आवाज 
नव सृजनक मूल मंत्र बनिते टा अछि

4. जीवन

मामूली लोकक जीनव जकाँ
नहि होयत अछि
देश केँ लूटि खयनिहारक जीवन
ओ वासनाक आगि मिझएबा लेल
कोनो निरंकुश राजक बनाओल
भव्य महल जकाँ होयत अछि
जकरा दुनियाक 
कोनो तंत्र नहि ढाहि सकल
मुदा जानि नहि कियैक- 
किछु साहित्यकार लोकनि सेहो
ओकर महिमामंडन करैत छथि
जकर सुरक्षा मे
चढ़ाओल जायत अछि
कतेको जीवन!

5. मित्र

ओकरा संग हमर आत्मीय संबंध सँ
हमर पिता केँ होइत रहलनि असोकर्य
जखन ओ आबए हमर आँँगन
दियाद सब सेहो करए लागैथ कनफुसकी
कारण, ओ दलिते नहि महादलित रहए
ताहि सँ हमरा दूनु केँ कहियो 
कोनो फरक नै पड़ल 
स्कूलक पहिले दिन सँ जुड़ल मित्रता
हमरा लेल आइ धरि अनामति अछि

किन्तु आब किछु दिन सँ
हमर सबसँ प्रियगर दोस 
कियैक नहि करैए फोन-फान
आ ने कोनो मैसेज शुभदिन-शुभरातिक
कहादनि हुनक पिता 
ओकरा देलखिन अछि कठोर आदेश
जे हमरे जकाँ बनबाक छौ हाकिम
आ ओ सेहो एकटा आदर्श पुत सन
मुस्कैत मोने-मोन अपन लक्ष्य दिश
एकटा डेग बढ़ा देलक अछि

मुदा इ की-
उदेसक पहिल पौदान पर चढ़िते
दुनिया कियैक अनसोहाँत 
लागए लागल अछि ओकरा
ओ सफलता बाट पर 
जहिना डेग बढ़बैत जाए रहल अछि
तहिना सर संबंधी सेहो 
ओकरा लागए लगलैए 
महत्वहीन अनोन-विषनोन

आब भेंट गेल अछि
ओकरा अपन ठौर-ठाम
परंच मोकाम पर पैर रखिते
जखन घुरि क' तकलक अछि पाछा
बहुत दूर धरि केओ नहि अयलै नजरि
तैयो ओ चढ़िते च'ल गेलै उप्पर
आ दुनिया होयत गेलै 
ओकरा लेल तुच्छ आ अस्तित्वहीन
जहिया ओ चल जाओत सब सँ आगू
तहिया संसार केहन लगतै ओकरा
से के जानए गेल अछि?

6. अपन प्रेमिका लेल

अहाँ कोनो बच्चा केँ पोहलाब' बला
चरिअनिया चॉकलेट नहि छी
आ नै हमर गामक मेला के
सतरंगा फूक्का छी
जकरा देखिते,
खुशी सँ झूमि उठी हम
अहाँ सिम्मरक गाछ पर बैसल
कुहकैत कोयलीक
मधु मातल बोली तँ नहिए छी
जकरा सुनिते, हम
गुनगुनाए लागब मधुर प्रेम गीत
अहाँ वसंतक अधखिलाएल
रंग-बिरंगा पुष्पगुच्छ सेहो नहि
जे भौंरा बनिक' रसपान करबाक होयत प्रबल इच्छा 

अहाँ हमर पियासल हिया लेल
एक गिलास शीतल जल छी
जेठक दुपहरिया मे
ह'म थाकल बटोही 
अहाँ वटवृक्षक छाहरि छी
गामक निर्जन बाध मे
एकटा छोट-छिन फूसक घर छी
कतेको जिनगीक प्राणदायिनी
नेहियाएल साओनक बुन्न छी
कोनो शुभदिवस पर देलहा
अदृश्य सहेजल उपहार छी

किंसाइत,तेँ अहाँ केँ देखिक'
ब'सक इंजन जकाँ
धड़कन नहि धड़कैत अछि
दम्माक रोगी जेना
स्वांस उप्पर नीच्चा
सेहो नहि होइत अछि
हँ,अहाँ ल'ग रहै छी
तँ हिया धड़कैत अछि 
पुरा बहत्तर बेर
स्वांस आबैत-जाइत रहैए
अपन मद्धिम लय मे
ओना अहाँक संग नहि रहला सँ
नह बरोबरि नहि पड़ैए फरक
मुदा सदिखन अहाँक संग रहनाइ
हमर परम सौभाग्य थिक
तृप्ति यदि जीवनक
सब सँ सुन्नर अनुभूति छै
तँ अहाँ हमरा तृप्त करै छी

कर्मक कादो मे
फँसल रहबाक कारण
अहाँ केँ दिन-राति
याद कएनाय असंभव
किन्तु अहाँ बिनु जीनाइ  
कोना होयत संभव ?
एखन,बस एतबे कहबाक अछि
कि अहाँक पान खएने लाल टुहटुह ठोर पर
पसरल मनमोहिनी मुस्की 
हमर प्राण,हमर सभ किछु

7. अपन अधिकार लेल

कहियो काल सूर्योदय सँ बेसी
सूर्यास्त नीक लगैत अछि हमरा
ओना लोक बुझैए मुनहारि साँझ केँ
थाकल बटोही/निराशाक प्रतीक
मुदा ओकरा गौर सँ देखला पर देखाओत
आशाक कतोक अनफुजल गिरह
तखन ई सत्य की-
सबटा नहि देखि पाएब हम

समय अपन दूनु अक्ष पर बितैत रहैए/रहत
कनेक परिवर्तनक संग
हम शून्य केँ पाबि जाएबा सँ पूर्व
मनुक्खक अवस्थाक अनुकूल
भूतकाल मे भेल नफा-नोकसान
आ वर्त्तमानक सफलता-असफलताक हिसाब मे
ओझराएले रहैत छी सदिखन
तकर बादो जानि नहि कियैक हमर भविष्य
भभाक'/ मुँह दुसैत' हँस' लगैए हमरे पर
ओना एहि सब बात सँ
कोनो फरक नहि पड़ल कखनो
कारण, जहिना कालक विषम बाट पर
संतुलन सधैत अनवरत नचैत रहैए प्रकृत
तहिना हमहुँ चिन्हारे मुद्दैक बीच मे लतखुर्दन होयत
जीबैत रहलहुँ अछि आइ धरि
फेर सँ सब किछु नीक भ' जएबाक भरोस पर

जखन कि हमर नियति
जानि-बुझिक' बनाओल 
गामक ओहि बतहा-सन नहि भ' सकलए
जे,कोनो उमंग/उजास मे 
शामिल भेने बिनु देखैत रहैए
बेवस्थाक मंच पर भ' रहल सबटा घिनौन नाटक....

कोनो दिन हेंज बान्हिक' किछु ढोंगी नायक
धांगि देने रहै ओकर जीवनक सबटा जजायत
जेना अद्यावधि भेटैत रहलैए
भुख सँ लहालोट भेल गरीब-मजूर केँ 'घसल अठन्नी'
लूटायत रहलैए ओकर आङ्ग-समाङ्गक अस्मिता
बुझि पड़ैए तेँ ओ बतहा
अपन हाथ मे रखने रहैए एकटा सटका
आ हमरा देखिते बड़बड़ाए लगैए
जे अपन अधिकारक हिफाजति लेल
सरिपहुँ उठाबहे पड़ैत अछि लाठी

8. बेसम्हार युद्व

मस्जिदक भोरका अजान सुनि
नित्तह उठैत छथि बाबा
आ सियारामक जयघोष करैत
विदा भ' जायत छथि बाध दिश
मुदा आइ कियैक बैसले रहला ओछाओन पर 
की आजुक अजान मे 
धमकीक स्वर सुना रहल छल?
हम एहि प्रश्न मे बोहियाइते रही
कि कनेक फरिच्छ भेला पर
मंदिर सँ गुंजित भेलै शंखध्वनि
जकरा सुनिते जागि गेल रहै
सबटा अनेरुआ राक्षस

काल्हि, गामक चौबटिया पर
केओ अपन धर्मक नाक ऊँच करबाक लेल 
काटि देने रहै कतेको निरपराधीक नाक
जाहि सँ भावनाक बलबल बहैत शोणित मे
सना गेल रहै गामक एकहक टा टोल 
एक-दोसराक रक्त सँ ठोप करबाक लेल
निकालल गेल रहै नम्हर-नम्हर जुलूस
प्रेमक प्रतिकार मे बैसाओल गेलै पंचायत
धर्मान्हरक पजारल आगि मे
दहक' लागल छल मनुष्यता

वैमनस्यता अपन स्वांग सँ
बेसाह' चाहैत छल एकटा आओर  युद्ध
जकर सेनानायक राँगल सियार रहै 
आ मुर्ख सिपाही बाघ बनिक'
दहाड़ मारि रहल रहल छल
एहन परिस्थिति मे 
के जा क' समझाओत ओकरा?
कारण, कहबा-सुनबाक एवजी मे
सिरिफ मृत्युक नियम बनाओल गेल छल
 
तैयो हम युद्धक अँचिया मे 
अंतिम चेरा झोंका जएबा सँ पहिने
ह्रदयक नोर सँ मिझएबाक लेल
विदा भ' गेल रही 
कि ठांय-ठांय चल' लगलै गोली
लहास लेने उड़ल जा' रलह छल गिद्ध 
अपन नड़्गटै सँ बेसम्हार भीड़ 
क' देलकै बन्न बाट आ बाजार
सिरिफ सुना रहल छल 
अनाथ आ विधवाक चीत्कार

एम्हर, हमर माथ पर
कोनो मारुख अग्नि बम जकाँ
चमकि रहल छलाह सुरुज
ओम्हर, दाँत सँ नह खोंटैत
की सोचि रहल हेताह बाबा ?
जे गामकेँ नव(शहर) होयत 
देखि रहल छी सदिखन
किन्तु! जाति आ धर्मक भेद मेटेबाक लेल
एखनो,कोनो तकनीक विकसित करबा मे
कियैक नहि सफल भ' सकल अछि गाम ?

कवि : प्रिय रंजन झा


प्रिय रंजन झा सँ सम्पर्क हिनक फ़ोन +91- 9006364064 पर कयल जा सकैत छनि । 

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1 Comments

Dr. Prakash Jha said…
खूब नीक रचैत छथि प्रियरंजन. बहुत बहुत बधाई..