हमर दिगन्त (आत्मकथा) — उषाकिरण खान : भाग-1

पद्मश्री उषाकिरण किरण खानक मैथिली मे आबय बला आत्मकथा (हमर दिगन्त) क एतय धारावाहिक रूप मे प्रस्तुत करबाक योजना अछि ताहि क्रम मे आइ पढू: 

भाग-1

बहुत लंबा छलै रस्ता। लहेरिया सराय सँ बसपर चढि सकरी बहेडा । बीचे मे मणिपद्म जीक गाछ पात फूल जाफरी बला आइ काल्हुक रिसॉर्टनुमा घर पर उतरनै कुशल। बाबूजी लै पॉट मे लीफ टी आ हमरा लै रसगुल्ला जा नै खोआबथि बस रोकने रहथि। तखन सुपौल बस स्टैंड पर उतरी। बासो बाबू , बासो चचा, बासुदेव सहनी लक दक कुरता पायजामा मे ठाढ रहथि। संग मे गाम सँ आयल बहिंचा ( नाव चलेनहार)रहबे करै। अटैची होल्डॉल नेने हुनके घर जकरा आगाँ होमियोपैथिक दवाईक दोकान रहै पहुँची। चाची आ मौसी राहरिक दालि अरबा भात तीमन तरकारी संग भाटा तरल जरूर राखथिन। बाबूजी के भाटा सब रूप मे पसिन्न रहैन्ह। से हमर सासु सदति कहैत रहथिन्ह। बासो बाबूक आँगन मे सब दुद्धा वैष्णव रहै तैं आमिष सुस्वादु भोजन रहै। दही आ मधुर रहबे करै। सुपौल बजारक चंद्रकला बड प्रसिद्ध रहै। खा पी कै नाव पर जाहि मे टप्पर लागल रहै हम सब बैसि जाइ। बासो चचा के बेटी लाडली हमरा लै कानय लागै। कहै कि या त मिनी बहिन रहि जाउक या हमरो नेने चलौ। बड्ड भावुक विदाई होइ।

आधा घंटा नाव चलै कि एकटा कछेर पर करमान लागल लोक रहै ठाढ़। बाबूजी कहथिन — “रजवा आबि गेल बुझाइयै”

हम बाहर निकलि ठाढ़ भै जाइ। नाव कछेर पर लागै। सत्तो कका हलसि कै कोरा उठा लेथि। हम 8-9 बरिस के रही से अपना के पैघ बूझै लागल रही मुदा सत्तो कका लेल धन सन।

“ अबियौ भाईजी, “ बाबूजी के उतरै पडैन्ह। “चलू दलान पर”

“हौ रस्ता चलै छी, बेर भेल जाइ छै।”

“ त जाय के दैयै आइ?”

“एह, जिद नै करहक; ओत्तौ लोक बाट तकैत हेतै।”

“ त, मिनी पर एकर काकी के , बहिन भाई के कोनो अधिकार नै?”— एतेक गप समाप्त होइत होइत दलान आबि जाइ। हमरा आँगन पठा देल जाइ बाबूजी लोकनि दलाने पर चाह जलपान करथि।

सत्तो कका माने बाबू सत्यनारायण सिंह। सब सँ छोट परिवार मे। सब सँ पैघ ठाकुर प्रसाद सिंह , दोसर विंदेश्वरी प्रसाद सिंह 1936 मे एम एल ए भेलाह । बाबूजीक ओएह मित्र। हुनका लाइलाज टी बी भै गेलैन्ह ओ स्वतंत्रता के सूर्य बिनु देखने महाप्रयाण कै गेलाह। तकरा बाद बुच्चन कका बौअन कका तखन सत्तो कका। माँ सभक प्रिय छोटका दियर ; हुनकर विशेष स्थान रहैन्ह परिवार मे। कतेक कहाकहीक बाद फेर नाव पर आबी। रजबाक चौर सँ बहराइत बोआरी खाल अबैत राति भै जाई ; बोआरी खाल सँ बहराय कोसी धार मे नाव खसै तखन बहिंचा सब के चैन होइक। दिशांसक डर रहै इजोरिया में। चारू भर जलामय रहै।चंद्रिका भरल राति रहै , बाबूजी सँ सटल हम डेराइत नै रही; ओना एहन अनुभव पहिल छल।

“ बाबूजी, सप्तर्षि तारा कोन छै?” - हम पुछने रहियैन। ओ खगोल शास्त्रक रसिया रहथि। हमर प्रश्न हुनका पसिन्न पडलैन्ह। तारा सभक ज्ञान दिय’ लागलाह। कनेकालक बाद हम निन्न पड़ि गेल रही। नाव सँ गाम पकरिया पहुँचैत अवश्य भोरुकबा उगल हेतै; हमर निन्न जखन टूटल तखन हम घर मे अपना ओछायन पर रही।

ई हम 1952-53 के गप कहै छी। तखन हम दोसर खेप पकरिया आयल रही। पहिल खेप एक टा पैघ घर आ दलान रहै। अइ बेर दू टा आओर घर रहै। झाँझन के माटि सँ लेबल घर चारि टा चार खढ़ सँ छारल एक टा सुरेबगर भितघर बनै छलै। से इलाका के सेसर मिस्त्री झौली मियाँ बना रहल छलै। हम बहुत ध्यान सँ माटि कादो होइत देखी। हमरा लेल ई नब वस्तु रहै। रजवा के माय के आ बाबूजी के बथान आ खेत देखनिहार सपरिवार पकरिया चल आयल रहै। बाबूजी अपना बगल मे बसा लेलखिन तिलजुगा बान्ह पर। एखनो ओकरा सभक परिवार बसल छैक। हमर संगी भुल्ली करिया कलिया मिनकरिया सब रहबे करै। ओकरा सब संगे धार मे हेलनाइ, आ नाव पर झिझरि खेलेनाई काज रहै।

“ यै मिनी दाई, आब सब गोटा एत्तहि रहबै रजबा नै जेबै “ से कहलकै एगो संगी। हमरा आभास भेल छल तकर। रजबा बिरान भै गेलै से बुझायल रहै। पकरिया गाँव मे दू घर कुजरा, एक मोची , एक कुम्हार , दू घर किसनौत यादव आ एक घर मलाह रहै। ओना गाँव पासवानक रहै। इयैह समीकरण एखनो छै। गाँव लम्बाई में तिलजुगा बान्ह पर बसल रहै। थोडेक खेत रहै बकिये कास पटपटी के जंगल।

गामक सटले बगल मे बनरी ब्रह्मोत्तर उत्तर भर रहै। ओ गाँव एकटा यादव आ समग्र मुसहरक छै । दक्खिन पच्छिम मे सिरनिया आ तकरे बगल मे भलुआहा छलै। सिरनिया यादव के गाँव रहै जाहि मे कुम्हरटोली से रहै। एक टा बलिया के अमीन साहेब सेहो जमीन बंदोबस्त कै रहि गेल छलाह जे राजपूत छलाह। अमीन साहेब के धीया पुता घर मे भनहि भोजपुरी बजैत हेतैन मुदा ओ सब मैथिली भाषी बनि रहल रहथि। भलुआहा मे विशाल कमलदह छलै। हमसब दौगल भागल कमल दह पहुँचि जाइ। दू चारि टा कमलक फूल घीचि ओकर नाल के कायदा सँ तोडि माला बना ली आ भीजल तीतल जखन घर आबी तखन माय सँ मारि खेबे टा कर एक टा हल्लुक चटकन! फ्ॉक बदलल जाइ आ गरम तेल मलि बैसा देल जाइ। हम सब दिनुका सरदियाह लोक। संभवत: साल डेढ सालक रही तखन न्यूमोनिया सँ बाँचल रही। हमरा दुर्गति पर बाबूजी असहज होथि आ दलान दिस चल जाथि मुदा दीदी( बाबूजीक पालनहर) माय के जरूर कथा कहथि।

“एकरा कथी लै दरेग हेतै, चारू धाम छिछिया कै एगो संतान मँगलौं से सोहाइ नै छै। कहू त एकर पीठ चारि बेर गूड़क चेकी लै पुजायल ,तकरा मारि मारि कै गाल लाल कऽ देलक। राक्षसी थिक! हमर दुर्गाक माँगल पोती नै रहतै एकरा लग। “ आ कोरा मे उठा कै अपना कोठरी दिस बढि जाथि। माय सब उपचार कइये देने रहथि। चुप रहथि। ओमहर हमर संगी सब के से दुर्गति एहने होइ।

“ दाई इसकूल सँ अबै नै छै कि ई छौंडी सब हुनका रने बने बौआइ लै जाइ छै। हरसंखनी सब आ तू “ — सबहक माय दादी छौंकी सँ दौडाबय लागै।

हमरा सब लै धन्न सन। दीदी के कोरा में हम मझौलियाक कथा सुनी, बाबा परबाबाक कथा सुनी, दियादी विद्वेषक चरच सुनी जे तखन नै बूझी लेकिन पैघ भेला पर हुनकर कथन कान में गुंजरित हुअए आ हम बूझय लागी।

जन्म लहेरिया सराय मे भेल जे एक टा सरकारी नगर छलै। कलेक्ट्रियेट आ जुडिशियरी के कर्मचारी के नगर। हमरा नजरि फुजलाक बाद खादी भंडार पुस्तक भंडारक नगर आ बजार। पक्का कच्चा तरतीब बला घर रहैक। दरभंगा मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल रहैक रेलवे स्टेशन , बस अड्डा रहै। बाग बगैचा आ क्लब सभक भवन रहै।मेडिकल कॉलेज लग बडका मैदान रहै आ पोलो फिल्ड कहाइ बला पैघ लॉन रहै। से देखिते रही। कॉस्मोपॉलिटन बनावटि रहै। पालन भेल रजवा मे जे पइघ बाबूसाहेब सभक हवेली बला गाम रहै। मुसहरी, धानुक टोल, खतबे टोल रहै। ताहि संह मोची, कुम्हार , मलाह , कमार इत्यादि रहबे करै। पइघ पोखरि आ कइएक टा कुआँ रहै। पनिभरनी एक टा कोनो कुआँ सँ पानि अनै जाहि मे राहरि आ कुर्थीक दालि गलि जाइ। घरे घर छोट सँ पइघ जनी हुक्का पीबथि , पछाति बीडी सेहो धूकथि। गाम मे विपन्न विधवा ब्राह्मणी रहथिन जिनका दू टा बेटी रहनि दैया आ चिन्नी। हमर नाम मिन्नी त ओकर नाम चिन्नी धरेलै। ओ हमर संगी रहै। ओ एक टा शानदार गाँव रहै। पकरिया टोल छलै आ अगल बगल मे सेहो सबटा टोले रहै। हम पटना के एंग्स गर्ल्स स्कूल मे पढैत रही त पटना नगर सेहो देखने रही। पकरिया स्वभावत: झुझुआन लागल। हम जखन बुझलियै जे इयैह स्थाई निवास होअऽ जा रहल छै तखन बड अचरज भेल। यद्यपि कोसीक समटल धार आ क्षितिज विस्तारित खेत, कास पटपटीक ,झौआ , बबूर,साहोरक वन सोहाओन रहै। कासक फुलायल रूप पटपटीक विशेष प्रकारक फूलक उपयोगिता देखि चकुआइत रही। कोन बाटे छुट्टी बीति गेलै से नै बुझायल। हम पटना होस्टल घुरै लै लहेरियासरायक अपन बंगाली टोला बला घर पर आबि गेलौं। ओत्तौ संगी सब उदास रहै । ओकरा सब के बुझा गेल रहै जे हम सब स्थाई रूप सँ गाम मे रहबै। हम सब ओई दुरूह स्थान में अपन वृंदावन बसा लेबै से के जनै छलै? किछुए दिन मे बाबूजी अमृत ज्ञानशाला स्थापित कै, अपन सैयन बीघा जमीन के कास तोड़ा खेत बना लेता आ अपनहिं ट्रैक्टर दुर्घटना मे कालकवलित अल्पायु मे भै जेताह से नहिं जनै छलियै। मुदा हुनका समाधि संग एखनहुँ हमसब ओत्तहि छी। यात्रा अहर्निश जारी छै; समाज अग्रगामी हुअए से विचार यात्रा , सद्य: व्यावहारिक यात्रा चलि रहल छै।

पद्मश्री उषाकिरण खान 
मैथिली आ हिन्दी विख्यात लेखिका श्रीमती उषाकिरण खानक जन्म लहेरियासराय मे 24 -10-1945 क' भेल छलनि | प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व मे एम. ए ., पीएचडीक संग २५ साल तक अध्यापन करय वाली श्रीमती खानक मैथिली मे छह टा उपन्यास, तीन टा कथा-संग्रह, अनेक नाटक, बाल कथा ओ खंडकाव्य प्रकाशित-प्रसंसित छनि । अद्यावधि लेखन मे सक्रिय आ  साहित्य अकादेमी पुरस्कार, प्रबोध साहित्य सम्मान, पद्मश्री सम्मान, भारत-भारती सम्मानक अतिरिक्त कतेको सम्मान-पुरस्कार आदि सँ सम्मानित पद्मश्री उषाकिरण खान सम्प्रति पटना मे रहैत छथि | हिनका सँ हिनक फेसबुक (https://www.facebook.com/ushakiran.khan.3) पर सम्पर्क कयल जा सकैछ |

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1 Comments

Anonymous said…
बहुत नीक लागल. हम हिनक लेखनीक बहुत पसिन्न करैत छियनि.