मैथिली रंगनायक दयानाथ झा — डॉ. प्रकाश झा

एहि सत्य केँ मिसियो भरि नकारल नहि जा सकैत अछि, जे वरिष्ठ रंग-पुरोधा दयानाथ झा आब हमरा सबहक बीच नहि रहलाह । ओना त’ दयानाथ झा नामक व्यक्ति मिथिला मे कतेको भेल हेताह आ वर्तमानो मे हेबे करताह, मुदा आइ जाहि दयानाथ झाक हम चर्च क’ रहल छी से एकदम फराक व्यक्तित्व छलाह । ओ वर्तमान मे पंचतत्व मे विलीन भ’ चुकल छथि, मुदा तइयो हमरा सभ लेल, मैथिली रंगमंच लेल, ओहिना उपस्थित छथि, जेना पहिने छलाह ।

स्व. श्री दयानाथ झा

स्व. दयानाथ झाक संबंध मे हमर परिचय पहिने हुनकर मैथिली रंग-योगदान सँ भेल, बाद मे हुनका सँ व्यक्तिगत भेंट-घाँट आ संवाद स्थापित भेल । हमरा जहिया सँ मैथिली रंगमंचक बोध भेल आ कोलकाताक मैथिली रंगमंचक संज्ञान हुअ’ लागल तहिया सँ ल’ क’ आइ धरि दयानाथ झा जीक संग मात्र दू दिनक सानिद्ध प्राप्त भेल अछि । हँ ! बीच बीच मे हम दुनू गोटे फोन पर गप्प सप्प करैत छलहुँ, बस एतबे परिचय ।

मुदा, एहि बीच जतेक रंगकर्मी सँ भेंट- घाँट, रंगमंच चर्च-वर्च, कोलकाताक मैथिली रंग योगदान, पत्र पत्रिका मे छपल आलेख आदि सँ जनतब पाब’ लगलहुँ– हम दयाबाबू केँ अपन अंतरमन मे गुनैइ रहलौं, अनुभूति लैत रहलहुँ, तैं ओ कहिओ हमरा सँ दूर नहि रहलाह । सोसल नेटवर्किंग सँ हमरा वा हमरा सबहक सूचना केँ ग्रहण करैत आशीर्वादक लेल प्राय: प्रथम फोन हुनकहि अबैत रहल । नाटक ‘गोरक्षविजय’ के बाद हमर कान ओहि फोनक इंतजारे करैत रहल, मुदा ओ अपनत्व भरल मधुर ध्वनि नहि सुनि पयबाक कचोट रहिए गेल । संगहि किछु अनिष्ठक शंका केँ सत्य क’ देलक । किछुए दिन बाद अभिशप्त सूचना प्राप्त भेल, जे श्रीमान् अहि क्षद्म रंग लोक सँ प्रस्थान क’ चुकल छथि । सर केँ मैथिल रंग सैल्यूट... ।

गुणनाथ झा लिखित नाटक आजुक लोक मे दयानाथ झा आ चन्द्र कला किरण

मैथिली रंगमंच पर बिरले कोनो व्यक्ति एहन हेताह, जे मैथिली रंगमंच लेल अपन योगदानक चर्च कम करथि होथि आ वर्तमान मैथिली रंग परिदृष्य पर विशेष चर्चा करथि होथि– से व्यक्तित्व छलाह दयानाथ झा । हमरा नहि लगइत अछि, जे कोलकाताक मैथिली रंगमंच पर जतेक असरि दयानाथ झाक छनि ततेक असरि दोसर किनको हेतन्हि । एकर पाँछा बहुत रास कारण छैक । पहिल त’ ई, जे ओ कहियो अपना केँ लोकप्रिय होबाक लेल काज नहि केलन्हि ।...

बात साल 2011 ई. क गप्प थिक । मैलोरंग द्वारा मैथिली रंगमंचक संवर्धन हेतु लगातार नव-नव प्रयास कयल जाइत अछि । एहि क्रम मे मैथिली रंगमंच पर जीवनपर्यंत योगदान हेतु ‘ज्योतिरीश्वर रंगशीर्ष सम्मान’ प्रारम्भ कयल गेल । पहिल सम्मान वर्ष 2010 ई. मे श्रीमती प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम’ (माँ) केँ प्रदान कयल गेलन्हि । मैथिली रंगमंच पर महिलाक उपस्थिति केँ निरंतरता प्रदान करबाक लेल हिनका ई सम्मान देल गेल छलन्हि । आब दोसर वर्ष उपर्युक्त सम्मान लेल चयन समिति बनाओल गेल छल । एहि बेर मुख्य विन्दु छल मैथिली रंगमंचक स्वर्णिम शुभारंभ स्थान कोलकाताक सम्मान करब । कोलकाताक मैथिली रंगमंचक चर्च होइते दूटा नाम हमरा सबहक आगू ठाढ़ भेलाह, जाहि मे पहिल नाम छल श्री दयानाथ झा जीक आ दोसर नाम स्व. श्रीकांत मण्डल जीक । श्रीकांत मण्डल स्वर्गीय भ’ गेल छलाह, ई सम्मान जीवित रंग पुरुष केँ प्रदान करबाक प्रावधान अछि । स्व. श्रीकांत मण्डल जीक नाम पहिनहि हटाब’ पड़ल । मुदा, हिनकर योगदान अप्रतिम छन्हि तेँ मैलोरंगक अध्यक्ष श्री महेंद्र मलंगिया जीक आदेशानुसार मैलोरंग दिस सँ एकटा नव सम्मान युवा रंगकर्मी लेल प्रारम्भ भेल, जकर नाम राखल गेल ‘स्व. श्रीकांत मण्डल युवा रंग सम्मान’ । तेँ ई कहबा मे कनियों संकोच नहि जे ‘स्व. श्रीकांत मण्डल युवा रंग सम्मान’ संचालन मे सेहो दयानाथ झा जीक अप्रत्यक्ष सहयोग छन्हि । संगहि श्री दयानाथ झा जीक सत्प्रयास सँ मैथिली रंगमंच कोलकाता मे अपन स्वर्णिम ध्वजपताका फहरौलक । तेँ दोसर ‘ज्योतिरीश्वर रंगशीर्ष सम्मान’ सँ सम्मानित करबा लेल श्री दयानाथ झा सँ बेसी उपयुक्त रंग व्यक्तित्व दोसर कियो नहि छलाह । सर्वसम्मति सँ एहि सम्मान लेल श्री दयानाथ झाक नामक घोषणा कयल गेल । अस्तु ...

मैलोरंगक ज्योतिरीश्वर रंग-सम्मान ग्रहण करबा काल मंच पर स्व. श्री दयानाथ झा 

सम्मान आयोजनक दिन लगीच आबि रहल छल । तहिया मैलोरंग आर्थिक रूपे समृद्ध नहि छल । श्री आनंद झा ताहि समय मैलोरंगक सहयोग करैत छलाह । श्री दयाबाबू हैदराबाद सँ सपत्नीक दिल्ली आबि रहल छ्लाह । दिल्ली मे हिनक ठहरबाक व्यवस्था कोन ठाम कयल जाय से हमरा सभ लेल अति महत्वपूर्ण छल । एहि सभ विन्दु पर हम सभ विमर्श करिते रही कि श्री आनंद जीक फोन आयल । साँझ मे भेंटक स्थिति बनल । हुनकर आग्रह छलन्हि– “दयाबाबू जाधरि दिल्ली रहताह ताधरि हुनकर आतिथ्यक भार हमरा देल जाय, हुनका हम अपना घर मे रखबन्हि ।” ई सुनि हम सभ किंकर्तव्यविमूढ़ भ’ गेल रही । कारण, दुनू मे ने कोनो संबंध आ ने कोनो पूर्व जान-पहचानाक भान छल । तखन मात्र मैलोरंग के सहयोग करबाक लेल हुनक ई आग्रह बुझायाल छल ।

‘सर ! श्री दयाबाबू सपत्नीक दिल्ली आबि रहल छथि, एहि ठाम कतेको सज्जन केँ हुनका सँ भेंट घाँट करक हेतन्हि, हमर रंगकर्मी लोकन्हि सेहो हुनकर सान्निद्ध पाब’ चाहैत छथि । स्वयं दयाबाबू केँ सेहो कतेको स’र-संबंधी सँ भेंट-घाँट करक हेतन्हि । जँ ओ अपनेक घर ठहरता त’ ई सब प्रक्रिया बाधित भ’ जायत । तेँ एहि बेर दयाबाबूक लेल हमसभ नीक होटल मे व्यवस्था केने छियन्हि, जाहि सँ किनको कोनो प्रकारक व्यवधान नहि हेतन्हि । दोसर; श्रीमान केँ दिल्ली अयला बाद हुनका ज’ त’ सुविधा हेतन्हि ओहि ठाम व्यवस्था क’ देल जेतन्हि ।” ई प्रस्ताव हम सभ देलियन्हि, जे आनंद जी केँ सेहो नीक लगलन्हि ।

श्री दयाबाबू सँ हमर पहिल दर्शन 2011 ई. क’ निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर भेल जखन हम हुनका रिसीभ करबा लेल गेलहुँ । कद काठी मे जाहिना हम छोट तकर विपरीत ओ लंबा चौड़ा, हृष्ठपुष्ट, सुदर्शन व्यक्तित्वक हमरा सामने ठाढ़ रहथि । गोर लगलियन्हि । होटल पहुँचलहुँ । ओ अपन रूम मे व्यवस्थितो नहि भेल रहथि कि हुनकर आ हमर दुनू गोटेक मोबाइल घनघनाय लागल । सबहक एक्के गप्प जे दयाबाबू पहुँचलाह, हुनका सँ कखन आ कोना भेंट भ’ सकत ? हमर छगुनता बढिते गेल, जे दिल्लीयो मे हिनकर शुभेक्षुक संख्या एतेक कोना छन्हि ? जिनके पुछियन्हि तिनके लग कोनो ने कोनो संस्मरण छलन्हि । अस्तु...

मुख्यमंत्री विन्देश्वरी मंडल, दयानाथ झा आ कौशल कुमार दास

साँझ मे श्री आनंद झा सपत्नी होटल अयलाह । नमस्कार-पाती भेल । चाहक संग आनंद जी गप्प प्रारम्भ केलन्हि । “सर ! हमर नाम भेल आनंद झा, अपने हमरा नहि जनैत होयब । मुदा, हमरा अपने सँ एक बेर भेंट भेल अछि कोलकाता मे... एतबे नहि सर, हम अपनेक ओहिठाम एक साँझ भोजनो कयने छी... ।”

“कहिया ? बहुत पहिनेक गप्प होयत ।” दयाबाबू अपन स्मृति-पटल पर ज़ोर दैत बजलाह ।

आद्र आँखिए आनंद जी अपन स्मृति केँ जीवंत क’र’ लगलाह ।

“सर ! कोलकाता मे हावड़ा रेलवे स्टेशन पर हम नि:सहाय ठाढ़ रही, जीवनक सभटा बाट बंद भ’ गेल छल । बुझू आत्महत्ये एक मात्र रास्ता बँचि गेल छल । जेबी मे एक्कोटा टाका नहि बँचल छल । दू दिन सँ भुखल रही । कनीए दिन पहिने अपनेक घरक पता कियो देने छलाह, ओ पुरजी निकालल आ हम बिना कोनो जान पहचान केँ अपनेक बासा पर पहुँचल रही । एकटा मैथिल युवा होयबाक नाते अपने हमरा अपना घर मे बैसेलहुँ, हमर स्थिति बुझने बिना भोजन करेलहुँ आ अगिला दिन दू सय टाका द’ क’ बिदा सेहो कयलहुँ । अपनेक सहयोग आ सकारात्मक सोच सँ हम एतेक प्रभावित भेलहुँ जे हाबड़ा स्टेशन सँ गाम घुमि जेबाक बदला हम सीधे दिल्ली अयलहुँ आ निरंतर मेहनत करब प्रारम्भ कयल । आई दिल्ली मे हम स्थापित व्यवसायीक रूप मे ठाढ़ छी सर । ओहि दिनक अपनेक स्नेह हमर जीवन बदलि देलक सर ।”

ई कहैत आनंद जी आ हुनकर पत्नी फफा क’ कान’ लगलाह । दयाबाबू हुनका कान्ह पर हाथ दैत स्नेह सँ डबडबायल आँखिए देख रहल छलाह । होटलक एहि कमरा मे हम आ हमर संगी सभ अचंभित भ’ एहि आत्मीय दृश्यक मौन प्रेक्षक बनल आलोकित होइत रही । एहन छलाह रंगयोद्धा दयाबाबू आ हुनकर रंग व्यक्तित्व । एहन महान व्यक्ति केँ ‘मैलोरंग’ काल्हि सम्मानित करतैक से सोचि हम सब गदगद भ’ रहल रही ।

ज्योतिरीश्वर रंग सम्मान सँ सम्मानित होइत काल दयाबाबू आद्र छलाह । अपन स्वीकृति वक्तव्य मे एहि बातक अत्यंत दु:ख छलनि जे - “रंग-संस्था सब किछु नव सृजनात्मक कार्य कम करैत अछि आ आपसी कटुता केँ प्रश्रय बेसी दैत अछि । उम्रक एहि पड़ाव पर आबि क’ कोनो रंग संस्था मोन पाड़त आ सम्मानित करत तकर मिसियो भरि आस नहि छल । एकर त’ आरो नहि जे दिल्लीक कोनो संस्था कलकत्ताक मैथिल नाटक करनिहार केँ सम्मानित करत । एहन क्षण हमरा विष्मय संग आह्लादकारी अछि । जुग जुग जीबथु मैलोरंग ” ।

एकटा बात हमरो आश्चर्य करैत अछि जे – मैथिली रंगकर्मी वा साहित्यकार जिनका सँ गप्प करू हुनक कहब रहैत छन्हि जे मैथिली रंगमंच लेल दया बाबूक योगदान अप्रतिम छनि । कोलकाताक मैथिली रंगकर्म केँ एक सूत्र मे संकलित केलाह... आदि-आदि । मुदा जखन वैह लोकनि अपन लेखन मे अबै छथि त’ सब किछु बिसरि जाइत छथि । आ जखन कोलकाता सँ एहन स्थित देखार होइत अछि त’ आरो कचोट होइत अछि । हालहि मे यानी 2018 ई. मे एकटा पुस्तक ‘नाटक आ रंगमंच प्रकृति आ प्रतिमान’ प्रकाशित भेल अछि । एकर लेखक छथि कोलकाताक श्रेष्ठ रंग चिंतक डॉ. वीरेंद्र मल्लिक । कोलकाताक मैथिली रंगमंचक पाठ मे दया बाबूक नामे मात्र एतबे सूचना अछि जे ओ मात्र चारिटा नाटक निर्देशित कयने छथि । यथा – ‘मधुयामिनी’, ‘शेष नहि’, ‘आजुक लोक’ आ ‘मिथिला माँगय खून’ । जाहि मे पहिल दूटा ‘मिथि यात्रिक’ संस्था सँ, त’ बाँकी दूटा ‘मिथिला विकास परिषद’ संस्था सँ । जखन कि हिनका बारे मे कहल जाइत छनि, जे अपन कि आन कोनो संस्थाक लेल नाट्य-निर्देशन करैत छलाह । नाट्य-निर्देशन त’ बाद मे पहिने कटेको नाटक मे अभिनय करैत रहलाह ।

कोनो व्यक्तिक योगदान केँ व्यक्तिगत संबंध सँ परे राखि निष्पक्ष भ’ संयोजित करब आवश्यक । अन्यथा आगामी विकासक नींब कमजोरे रहि जायत आ ढनमनाइत देरी नहि लागत । एहि बीच एकटा सुखद सूचना अछि, जे स्व. दयानाथ झाक व्यक्तित्व आ कृतित्व पर नवारम्भ प्रकाशन सँ श्री अजित आजाद आ डॉ. कमल मोहन चुन्नू जीक संपादकत्व मे पुस्तक प्रकाशित करबाक योजना पर काज चलि रहल अछि । अस्तु...

डॉ. प्रकाश झा 

रंगकर्मी एवं शोधार्थी डॉ. प्रकाश झा मैथिली रंगकर्म केँ वैश्विक स्तरपर स्थापित करबाक श्रेय छनि । कतेको राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी मे आलेख पाठ एवं मैथिली आ हिन्दीक महत्वपूर्ण पत्रिका मे नियमित शोधालेख प्रकाशित । पी.एच.डी. एवं नेट, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार सँ सीनियर SRF (2016) आ JRF (2004) प्राप्त डॉ. झाक कुल चारि गोट पुस्तक ‘महेन्द्र मलंगियाक सात नाटक (सम्पादित), ‘महेन्द्र मलंगिया : व्यक्तित्व आ कृतित्व (सम्पादित)’ , ‘रज़िया सुल्तान; मैथिली मे (अनूदित; प्रकाशन विभाग, भारत सरकार)’ , ‘ज्योतिरीश्वर कृत धूर्त्तसमागम : प्रस्तुति, प्रक्रिया एवं परिणति (सम्पादित)’ पुस्तक प्रकाशित छनि । 40 सँ बेसी नाटकक निर्देशक डॉ. झा जाहि मे ज्योतिरीश्वरक ‘धूर्त्तसमागम’, विद्यापतिक ‘मणिमञ्जरि’, ‘गोरक्ष-विजय’ आ पं. जीवन झाक ‘सुन्दर संयोग’ शामिल अछि 50 सँ बेसी नाटक मे अभिनय सेहो कयने छथि । 19म भारत रंग महोत्सव (2017) मे हिनक निर्देशित नाटक ‘आब मानि जाउ’ आ 20म भारत रंग महोत्सव (2019) मे निर्देशित नाटक ‘धूर्त्तसमागम’’ चयनित आ मंचित छनि । बिहार सम्मान (2015); कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग, दिल्ली सरकार, अरुण सिंहा स्मृति सम्मान (2015); पा.ना.म.; प्रांगण, पटना, बिहार, मिथिला विभूति सम्मान (2014); अ.भा.मि. संघ दिल्ली , युवा रंगनिर्देशक (2013); साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार , स्वर्ण पदक (अभिनय;1996); ल.ना.मि. विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार आदि सम्मान सँ सम्मानित डॉ. झा सम्प्रति मैलोरंग रेपर्टरी एवं प्रकाशनक संस्थापक निदेशक, सुप्रसिद्ध रंग संस्था ‘संभव, दिल्ली’क अभिनेता आ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्लीक’ नाट्यशोध पत्रिका ‘रंग प्रसंग’क सहायक सम्पादक छथि । हिनका सँ prakashjha.nsd@gmail.com पर संपर्क कयल जा सकैछ ।

*ई आलेख 'अनुप्रास'क दोसर अंक मे प्रकाशित भेल अछि । पत्रिकाक प्रति हेतु एकर सम्पादक श्री दीप नारायण विद्यार्थी सँ हुनक मोबाइल नम्बर +91-8862977228 पर सम्पर्क कयल जा सकैछ 

Post a Comment

3 Comments

अभिनव संस्मरण। आदरणीय स्व.दयानाथ झाक रंगमंचीय महत्ताकें उकेरैत संस्मरण । अपन परवर्ती रचनाकार आ रंगकर्मी सभक लेल स्नेहक भंडार छलाह। नमन हुनका।
- प्रदीप बिहारी
बहुत नीक आलेख/संस्मरण। एहि आलेख सँ मैथिली रंगमंच आ ओहि मंचक शिखर पुरूष परमादरणीय स्व. दयानाथ झा सँ साक्षात्कार भेल।
Siddhi Nath Jha said…
Ati sundar. Bahut neek aalekh pujya bhaiya ka lel