हमर दिगन्त (आत्मकथा) — उषाकिरण खान : भाग-2

पद्मश्री उषाकिरण किरण खानक मैथिली मे आबय बला आत्मकथा (हमर दिगन्त) क एतय धारावाहिक रूप मे प्रस्तुत करबाक योजना अछि ताहि क्रम मे आइ पढू: 

भाग-2

हमर बाबूजी जगदीश चौधरी जे जगदीश भाईक नाम सँ विख्यात छलाह से मझौलिया गाँव (दरभंगा) मे सम्पन्न किसान द्वारिका चौधरी ( बारहघरिया टोल) क पौत्रक रूप मे जन्म लेलनि। पिताक नाम छलैन्ह हरिवल्लभ चौधरी। मात्रिक समस्तीपुरक कोनो गाँव उदयपुर छलैन्ह। हुनका ममियौत केँ हम लहेरियासरायक डेरा पर अबैत देखने छलियैन।

पिता हरिवल्लभ चौधरी काशी सँ ज्योतिषाचार्य भेलाह, जयपुर जाय ताहि दिनुका प्रथानुसार शास्त्रार्थ विजेता रहथि। ओ अपना घरक भविष्यवाणी करैत रहथि । दुर्योग जे बाबूजीक माँ जखन ओ एक वर्षक रहथि तखनहि साँप काटला सँ दिवंगत भै गेलखिन। बाबूजी केँ दीदी लछमिन दाई जे बालविधवा रहथिन आ बेसीकाल नैहरे मे रहथिन वैह पोसय लागलखिन। दीदी कहथिन - बारहो बरन के परसौतीक दूध पिया पोसलौं तैं ई बहकि गेल। गामक रेबाज आ 20 बरिसक युवा केँ के विधुर रहय दितै? से घटकैतीक अमार लागि गेलै। हमर बाबा अपना जेठ बहिन लछमिन आ छोट बहिन शहठूल केँ बैसा क' बुझबैक कोशिश केलखिन-“ हम ज्योतिषी छी से तोरा सबकेँ विश्वास होइ छौ ने?”

“ कियैक ने होयत?” लछमिन दाई कहलखिन ।” त सुन ई बच्चा हरमुराह छौ। साल भरि मे माय चल गेलखिन आ पाँच बरिस मे हमहूँ नै रहबैन। मूल नक्षत्र मे जनमल छथि, बड्ड पैघ हेताह, नामी-गामी, हिनकर अयोध्याक पसार हेतैन्ह; एकपुरुखिया वंशक बानि छूटत। हिनकर सुख आहाँ केँ भेटत बडकी दाइ हमरा नै। हमर विवाह नै करू , कथी लै एक टा आर विधवा बढायब घर मे?”— दीदी तमसा गेलखिन। बड़ भेलाहे जोतखीक नाँगरि! बियाह हेबे करतौ। तोरा की भेलौ, जे तों मरि जेबही? आ समस्तीपुरक बेला गाँव मे हुनकर विवाह कैल गेलनि। ठीके हमरा बाबूजी माने जगदीशक ग’र मे पाँचम बरिस मे उतरी पड़ि गेलैन्ह। हरिवल्लभ चौधरि केँ बायसी रोग (टाइफाइड) भै गेलैन्ह जकर दबाई नै निकलल छलै तैं कोनो उपाय नै। बेला वाली किशोरी विधवा रहथिन जिनका जगदीश सँ बड़ लगाव रहैन्ह मुदा प्लेगक पसार मे ओहो परलोक वासी भेलीह।

हरिवल्लभक मृत्युक बाद बाबा द्वारिका चौधरि जगदीश केँ पढै लिखैक खिलाफ रहथिन। धारणा छलैन्ह जे बेसी पढब लिखब हमरा घर मे नै सहैत अछि। गामक स्कूल मे बाबूजी पढथि।

ई सब खेरहा दीदीक कहल कहै छी। मझौलियाक सबटा गप दीदीक कहल कहब। घर मे मात्र बाबा , बा, दीदी रहथिन। बाबूजीक उपनयन ससमय भेलनि आ तकरा बाद विवाह ताहि दिन मे अवश्मभावी एकटा सौभाग्यवती कन्या सँ विवाह भेलैन्ह मोरो गाँव मे। ओ ठीके सौभाग्यवती रहथिन्ह। द्विरागमन सँ पहिनहि स्वर्गवासी भै गेलखिन। बाबाक खेत पथारक काज , मामिला मोकदमाक काज जगदीश 12 बरिसक भेला नै कि देखय लागलाह। ताही क्रम मे बाबू धरणीधर प्रसाद सँ संपर्क भेलनि। धरणीधर बाबू ओकीलक जमाय सेहो कालांतर मे प्रसिद्ध ओकील नेता ब्रजकिशोर प्रसाद लहेरियासराय कोर्ट मे आबि गेलखिन। ओ महाराज दरभंगाक रिटेनर रहथिन। ई सब देशक स्वतंत्रता लै काज करै छलाह।

ब्रजकिशोर बाबू सँ पहिने दरभंगा राजक रिटेनर रहथिन बाबू लक्षमण प्रसाद( लछुमन जी) हुनका बाद हुनकर पुत्र बाबू माया शंकर प्रसाद डॉक्टर भै गेलाह तैं धरणीधर प्रसादक प्रखर बैरिस्टर जमाय बजाओल गेलाह। बतबैत चली जे बाबू लक्षमण प्रसादक पौत्री साहित्यकार मृदुला प्रधान आ प्रपौत्री साहित्यजीवी आराधना प्रधान छथि। जगदीशक धरणीधर बाबू पुत्रवत् मानै छलखिन। हुनक संवेदना मे ओ ऊबचूब करैत रहथि। हुनका हिनकर जमीनक रकबा बूझल रहैन्ह, आ एकल रहथि सेहो बूझल रहैन्ह। जखन तिलकवादी रहथि तखने सँ जगदीश केँ देशप्रेमक पाठ पढ़ौनाइ शुरु कै देलनि। एक दिन जगदीश कोर्ट परिसर मे सुंदरकांड बेचैत ककरो देखलखिन । हुनका लग जे पाई रहैन्ह ताहि सँ कीनि लेलनि। गाम पर बाबा केँ हलसि कै देखौलनि तखन ओ तमसा गेलखिन।

“अहाँ केँ किछु पढक नै अहि, हमरा बेसी पढल लोक नइं धारलक। संन्नुक मे ततेक ने चानी सोनाक रुपैया राखल अहि जे गनैत-गनैत जिनगी गुदस्त भै जायत” पोथी छीनि सन्नुक मे राखि देलखिन। ताही काल मे बाबा असक्क भै गेलखिन। वैद्य जी जे दवाई देलखिन से गायक दूध मे पीबाक रहै। अपन गाय बियाएल रहै। शुद्ध सेहो भै गेल रहै। मुदा जा कुशेश्वर बाबा केँ नै चढ़तै ता मुँह मे नै लेथिन बाबा। 14 बरिसक जगदीश दूध दुहबा सोबरना लोटा मे दूध लेलनि आ भोरे-भोर दौगैत मंठ पर गेला दूध ढारि भोला बाबा केँ तुष्ट कै ओहिना एलाह साँझ धरि। बाबा दबाई खेलखिन । जगदीश फोंका आ थकान सँ चारि दिन ओछायन धेने रहथि। जीवट आ करि गुजरैक स्वभाव छलैन्ह!

मुदा बाबा बहुत दिन संग नै देलखिन, स्वर्गक बाट देखले छलनि, चलि गेलाह !

14 बरिसक बालक गृहस्वामी छलथि। मैंयो( दादी) छलखिन, लछमिन दीदी छलखिन बालविधवा; हुनकर सासुर निमैठीक सम्पन्न घर मे छलैन्ह। पतिक नाम रहैन्ह शीतल झा। हमरा सन लगार लोक परी आ भूतप्रेतक खिस्सा नै सुनय चाहै छल, जीवित लोकक खिस्सा मे रुचि रहय। दीदीक अलग भनसा घर रहैन्ह। हम पुछियैन्ह जे आहाँ हमरा मायक हाथक कियैक नै खाइ छी? तखन ओ विवाहित विधवा आ तकर रहन-सहनक तफसील देथि। हम पुछने रहियैन -“ तखन त’ एकटा लड़का सँ बियाह भेल होयत? तकर नाम कहू”

“ दुर बताहि, स्वामीक नाम कतौ लेल जाइ छै?” ओ कहथि। हमरा जिद पर कहलनि — “एक-एकटा आखर कहै छियौ लिखि ले , नाम बुझा जेतौ”- स, त,  ल।

“ई कोन नाम भेलै दीदी? सतल?”

“ सी लगा “

“हँ, शीतल चौधरी?” हम थपड़ी पारलौं।

“ नै झा” आ तखन नामक समस्याक समाधान भेलै। गामक नाम सेहो नै लेथि। ओ माँ सँ पता चलल।

दोसर छोटकी दीदी मैंयाँ रहथिन सकरी लग इब्राहिमपुर बियाहलि। पूर्ण परिवार आइयो धरि छैन्ह। बहुत खेत जाहि मे कुसियारक फसिल। दीदीक गाम मे एक हफ्ता रहल रही तखन कुसियार पेरब गूड़ , राब बनब देखने रही। पीसा बाबा एकटा कोनो मशीन लगेने रहथि जकरा संभवत: तुरपीन कहल जाइ , जाहि मे भुर्रा जकाँ चिन्नी तैयार होइ। शहठूल दीदी हमरा बाबाक सबसँ छोट बहिन रहथिन। हुनकर बेटी रहथिन अमिरका बेटा भूषण। भूषण कका केँ लगाव रहलैन सदति।

हुनकर मजेदार खिस्सा कहब जरूर कहियो।...


पद्मश्री उषाकिरण खान 
मैथिली आ हिन्दी विख्यात लेखिका श्रीमती उषाकिरण खानक जन्म लहेरियासराय मे 24 -10-1945 क' भेल छलनि | प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व मे एम. ए ., पीएचडीक संग २५ साल तक अध्यापन करय वाली श्रीमती खानक मैथिली मे छह टा उपन्यास, तीन टा कथा-संग्रह, अनेक नाटक, बाल कथा ओ खंडकाव्य प्रकाशित-प्रसंसित छनि । अद्यावधि लेखन मे सक्रिय आ  साहित्य अकादेमी पुरस्कार, प्रबोध साहित्य सम्मान, पद्मश्री सम्मान, भारत-भारती सम्मानक अतिरिक्त कतेको सम्मान-पुरस्कार आदि सँ सम्मानित पद्मश्री उषाकिरण खान सम्प्रति पटना मे रहैत छथि | हिनका सँ हिनक फेसबुक (https://www.facebook.com/ushakiran.khan.3) पर सम्पर्क कयल जा सकैछ |

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