सामाक पौती (कथा) — पं. गोविन्द झा

कदीमाक फूल तँ सभ देखने होयब आ ओकर शोभापर मुग्धो भेल होयब मुदा कहियो कुम्हड़ोक फूलपर ध्यान गेल अछि? एहूमे किछु शोभा छैक, एकरो कोनो उपयोग छैक, से सभ नहि जनैत होयत। से जनत होयत ओ बहिन जकर हृदय कहियो भ्रातृस्नेहक बाढ़िसँ उमड़ि उठल होयतैक; से जनैत होयत ओ भाग्यवान भाय जकर हाथ कहियो बहिन सिनूर-पिठार फूल-पानसँ पुजने होयतैक।

किरणो नहि फूटल अछि ता चारि-पाँच कुमारि कन्यासभ महिसिक घरक आग थहाथहि क' रहल अछि एही कुम्हड़क फूललय। क्यो चार दिस देखि रहल अछि जे कोम्हर खूब फुलायल छैक, तँ क्यो चारपर चढ़वाक गर ताकि रहलि अछि। ता सभसँ जेठकी एक गोट छोड़ाकेँ परतारि अनलक आ ओकरा कान्हपर उठा पोन ठेलि क' कोनहुना चारपर चढ़ौलक। छौंड़ा अगरायल जकाँ खन एम्हर खन ओम्हर, फूल तोड़ि-तोड़ि क' फेक' लागल आ कन्यासभ लूटि- लूटि खोंइछमे जमा कर' लागलि।

"बाउ, दू टा फूल हमरो देब?" अत्यन्त नियंत्रित ओ दीन स्वरमे जगमाया अपन आङनक टटल टाटल भूर दने मुँह बाहर करैत छोड़ाकेँ कहलकै।

"भौजी, अहूँकेँ भाय छथि?" छौंड़ा स्नेह-भरल ध्वनिमे उत्तर देलक। जगमाया जा अवरुद्ध कण्ठसे 'हँ' शब्द बहार करथि ता ओम्हर दोसर आङनसँ एक जनी टन-सन बाजि उठलीह – "भाय रहितथिन तँ कहियो खोजो-पुछारी करितथिन की?'

जगनाया कनेक गंभीर आंखिसँ ओहि महिला दिस तकलक आ फड़कैत ठोर अलगौलक जेना कि बाजति, मुदा मुहसँ बकार नहि बहरयलैक, बहरयलैक आँखिसँ केवल दू ठोप गरम नोर ओ सहसा मुँह नीच खसा लेलक।

छौंड़ा एक मुट्ठी फूल जुमा क' जगमायाक आङन दिस फेकि देलक जकरा जगमाया अपन आँचरमे लोकि लेलक। सभ छौंड़ा-छौंड़ी फूल ल' ल' चलि जाइत गेलि। जगमाया आँचरक कोरसँ नोर पोछैत असोरापर आबि माँटियहिमे फूल राखि देलक आ रौदक गरे बैसि चरखा काट' लागलि। चरखा तँ ओ कटैत रहलि कब घड़ी घरि, परन्तु सूत दुइयो-चारि हाथ कटने होयत कि नहि ताहिमे सन्देह, कारण जय बेर ओ हाथ बढ़ाब' लागय तय बेर टुटिये टा जाइक। अन्तमे तमसा क' ओ पीर फेकि देलक लागलि बाङ तुम'।

आ मोन ओकर छलैक दोसरे दिस। ओहि महिलाक ओ वाक्य ओकरा छातीपर ठनका जकाँ खसल छलैक, आ हृदयमे आगि लगा देने छलैक जकर धधरामे ओकरा अपन जीवनक अन्हरायल दिनसभ एखन साफ-साफ सूझि रहल छैक।

ओकरा मोन पड़' लगलैक - कोना ओ नुनू भाइक जुत्ता, कमीज आ इसकुलिया टोपी पहिरि पुरुष होयबाक विफल मनोरथ नृत्य करय, कोना नुनू भाइक सङ आमक गाछीमे मचकी झुलैत ओ सतघरा खेलाइत भरि भरि दिन बिताबय; कोना ओ नुनू भाइक सङ बैसाखक दुपहरिमे बुढ़िया मैआक बाड़ीसँ चोरा-चोरा लताम ओ अड़रनेवा तोड़य, कोना ओ रूसि रहयत नुनू भाइ ओकरा गुदगुदी लगा-लगा हंसा क' बौंसथि।

ओकरा फेर मोन पड़लैक – कोना ओकर माय दुखित पड़लैक आ एक बरख धरि रोगी रहि मरि गेलैक, कोना ओकर बाप पूब भर नोकरी कर' गेलैक आ ओतहि मलेरिया शिकार भ' गेलैक। ओहि दिन ओ आठे वर्षक तँ रहय, तैयो ओकरा ओहिना मोन छैक जे छट्ठू बाबू आबिक' कहने रहथिन - "बाप जे एक हजार ऋण कपारपर छोड़ने गेलथुन अछि, तकर कोन उपाय करबह? एके टा रस्ता छहु, जगमायाक विवाह तेहन ठाम कराबह जे ऋणसँ उद्धार करा सकहु।"

फेर ओकरा मोन पड़लैक - कोना ओकरा यौवनक प्रखर मध्याह्नमे ओकर सौभाग्यक सूर्य वाधंक्य राहुसँ ग्रसित भ' ओकर जीवनकेँ सहसा अन्धकारमय क' देलनि, आ कोना टोल-पड़ोसक लोकसभ आबि-आबि ओकर एहि दारूण व्रणपर नोन छीटैक – 'एहन चंडाल-सन भाग भगवान ककरो ने देथुन।'

ओ सोच' लागलि - की एही नुनू भाइक हम एहि फूलसँ पूजा करब? एहि चंडालकेँ नोत द' खोआयब? लोक की फुसि कहैत अछि, सत्ते ई चंडाल थिक, महा चण्डाल थिक। जँ कहियो दया-धरम, कहियो सिनेह रहितैक, तँ कहियो घूरिक' देखियो तँ जाइत बारह बरख बीति गेल, कहियो भरदुतियोमे नहि आयल......।

सोचैत-सोचत ओ सहसा उठि क' ठाड़ि भ' गेलि आ सोझे छिड़िआयल कुम्हड़क फूल लग जा दुनू हाथे ओकरा नोच' लागलि। ता ओम्हर इनारपर क्यो बाजलि - "बारह बरखपर आइ भखरामवालीक भाय अयलनि अछि।" जगमाया थकथका गेलि। केओ ओकरा कानमे कहलकै - 'आ जँ एहिना तोरो 'नुनू भाइ आबि जाथुन?' ओ फेर बचल फूलसभकेँ समेटि साजीमे क' चिनवारपर राखि देलक।

ओकरा आजुक दिन विचित्र दशामे बितलैक। भरि दिन ने खयलक; ने पीलक आने आङनसँ कतहु बहरायलि। स्नेह ओ घृणा, आशा ओ निराशा, कोप ओ दया ओकरा भरि दिन बताहि बनौने रहलैक। 

मुदा ओकर नुनू भाइ नहिएँ अयलैक।

जगमाया हृदयपर जे ओहि दिन निराशाक चोट लगलैक तहियासँ ओकर मोन विचित्र तरहेँ डोलि रहलैक अछि। कहियो तँ ओ अपनहि महिला मंडली मे बाजि उठय – नुनू भाइ मरियो जाइत तँ बुझितहुँ जे भाय नहि अछि। आ कहियो जँ केओ ओकरा मुहपर कहि दैक – 'एहन कसाइ-सन भाय जे हमरा रहैत तँ हम जीवन भरि कहियो नामो ने लितिऐक'। की बस, एतबा सुनितहि ओ अगिनश्च वायुश्च भ' उठय - 'अयँ, हमरा भायकेँ अहाँ कसाइ कहब?" 

मुदा आइ ओकरा निर्णय करहि पड़तैक जे ओकर 'नुनू भाइ' थिकैक कि 'कसाइ'। रातिए तँ कार्तिक पूर्णिमा छलैक ओहो सामा खेलाय गेलि छलि क्रूर खेतमे, गीत गौने छलि - 

सामा खेलाय गेलहुँ भाइ अङना हे

बाहे भाइ अङना हे। 

छोटकी भौजी लेलनि लुलुआय

ननदि छोड़ अङना हे

आ बहिनपास सामा बदलने छलि ई मन्त्र पढ़ि – 

पढ़ि तोर भैया जीबओ त' मोर भैया जीबओ

लाख बरिसेँ जीबओ

जैसन कड़रिक थम्ह तैसन भैयाक जांघ

जैसन धोवियाक पाट तैसन भैयाक पीठ 

जेसन पोखरि सेमार तैसन भैयाक टीक

तँ की ओ वास्तव मे 'भाइक' हेतु नहि 'कसाइ' हेतु ई मंगल कामना कयने छलि? ई प्रेम-पर्व मनौने छलि? नहि नहि, ओकर नुनू भाइ वास्तवमे 'नुनू भाइ' थिकैक। ओहि बेचारा कोनो टा दोष नहि छैक। नेनहिमे माय मरि गेलैक, आ मोछक पम्हो नहि आयल छलैक ता भगवान बापो हरि लेलथिन। जगमायाकेँ इहों मोन छैक जे ओकरा नुनू भाइके क्यो कहलकैक जे जगमायाक विवाह बूढ़ बरसँ किऐक करबैत छहक तँ ओ ठोंठ फाड़ि क' कान' लागल रहय आ कहने रहैक 'हम की करू, छट्ठू काका जे कहताह, सैह ने हमरा कर' पड़त।' जगमायाकेँ एहि बातक सभसँ अधिक कचोट रहैक, जे बारह बरखमे कहियो नुनू भाइ भेंट कर’ किऐक ने अयलैक। मुदा आइ तकरो समाधान भ' गेलैक। ओकरो भाय जखन ओकर बूढ़ वरक हाथ बेचि क' जिविते वध क' देने रहेक, तँ अपन कसाइ-सन मुँह देखब’ जगमायाक सोझाँ कोना अबितैक?

एहि बारह वर्षमे ओ प्रायः ई कहियो नहि सोचने छलि जे नुनू भाइक प्रति ओकर की कर्तव्य थिकैक। आइ जानि नहि किऐक, भिनसरेसँ ओकर अपन कर्तव्य भावना जागि रहल छैक। ओ सोचैत अछि, हमहीं केहन भेलहुँ। नुनू भाइ जँ लाजें हमरा मुँह देखा नहि सकल, तँ हमरो तँ उचित छल जे कहियो जा क' देखितिऐक। बियाह कयलक, दुरागमन कयलक, सुनै छिऐ जे एकटा बेटी भेलैक, आ हम....। नुनू भाइ मोने मोने कहैत होयत, 'केहन भेलि हमर बहिन जे हम लाजे नहि बजौलिऐक तँ कहियो अपनो फुरने एक बेर आबि क' भाउजिकेँ ओ भातिजकेँ देख' नहि गेलि। नेनामे जे हम ओतक आवेश करिऐक से सभटा बिसरिए गेलि की? नहि नहि, नुनू भाइक आबेश हमरा कहियो नहि बिसरत, कहियो नहि।

सोचैत-सोचैत ओकरा मुँहसे अपनहि बहरा गेलैक – ' नुनू भाइ भा.... इ!!' आ ओ हबोढकार भ' कान' लागलि। किछु कालमे जखन नोरक वेग शान्त भेलैक, तँ ओ एक बेर सूर्य दिस तकलक, एक लग्गा दिन उठल छलैक; फेर सीकपरसँ सामाक पौती उतारि, एक चङेरीमे ल' ओकर चारूकात पाँच-सात टा सामा द' घरमे ताला लगा, चङेरी लेलक माथपर आ ककरो किछु कहने सोझे विदा भ गेलि नैहर बारह बरखपर।

ओ निछोह बढ़लि जाइत छलि सोझे आगाँ मुँहे, बाटपर निश्चल रूपेँ आँखि गड़ौने। एखनो धरि-रहि क' कनबाक हिचकीसँ ओकरा सगर देह थरथरा उठैत छैक, एखनो घरि नोरक टघार ओकर सुखालय गालपर ओहिना देखार छैक, एखनो घरि हृदयमे जे भावनाक बिहाड़ि बहि रहल छैक से मुखच्छविम स्पष्टतः भासमान छैक।


दू पहर दिन उठ उठैत-उठैत ओ पहुँचलि गंगाक ओहिपार। नावसँ उतरिते सभ यात्री अपन अपन बाट घयलक। आ जगमाया? ओ उतरि क' गंगाक तटमे आबि माथपरक चङेरीकेँ दुनू हाथेँ ऊपर उठा खूब जोरसँ नीच पटकि देलक। सामा सभ चूर-चूर भ' गेलैक, सामाक पौती टुकड़ी टुकड़ी भ' गेलैक, आ चूड़ा ततेक जोरसँ छिड़िअयलैक, जे गंगाक धारमे चेल्हबा माछ सभ सेहो लपकि-लपकि क’ खयलक।

यात्री सभक हेतु ई बड़का तमासा भ' गेल। गोट-गोट क' सभ यात्री चारू कात ढेर लागि गेल। जगमाया अचल आँखिसँ ओहि फूटल सामाक पौती दिस टक-टक तत चित्रवत् ठाढ़ छलि। अनेक यानी अनेक प्रकारक प्रश्न कयलकैक, किन्तु ओ ने ककरो उत्तर देलकैक आ ने ककरो दिस तकबे कयलक। एकटा बुढ़िया कहलकैक — 'तोँ सभ की बुझबहक, किछु सीख' लागलि होयतीह से गुण झीकि लेने होयतनि। मुँह नहि देखें छहून केहन अलच्छी जकाँ लगै छनि!' फेर दोसर महिला पुछलकैक— 'भाय ले' सामा लेने जाइ छलीह तँ एना पटकि किएक देलहक?' जगमाया उत्तर देलकैक - 'हमर भाय मरि गेलि।' आ ताहिपर यात्रीसभ बताहि जानि हँसि देलकैक।

तावत् नाव छेकिक' मलहबा सेहो पहुँचि गेल। ओकरा ई तमासा देखि आरो आश्चर्य लगलैक। ओ दुनू हाथ ऊपर उठबैत बाजल - 'एह, भगवानक लीला! ठीक एहने तमासा, एही जगहपर भरदुतिया दिन भेल छलैक। एहिना एकटा पुरुष बहिनसँ नोत लेब' जाइ छल; की मति भेले की ने, एक नदिया दही आ चारि-पांच टा ठकुआ रहैक से एहिना माँटिपर पटकि देलकैक आ कान' लागल। लोक पुछलक तँ की कहलकैक - 'बहिनकेँ तँ हम अपनहि मारि देलिऐ तँ सनेस ककरा देबै?

जगमाया एक बेर मलाहक मुँह दिस तकलक, फेर ओहि फूटल सामाक पौती दिस, आ फेर ओहि छिड़िआयल चूड़ा दिस जे यात्री सभक लतखुर्दनसं पूर्णतः बालुमे मिज्झर भ' गेल छलैक।

ओ देखलक, ओकर नुनू भाइक नदियाक खपटा आ एहि सामाक पौतीक खपटा मिलिक' एक भ' गेल अछि।


पं. गोविन्द झा

साभार : सामाक पौती (कथा-संग्रह)

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