खैंक (कथा) — नारायणजी

        घटना ओहि दिनक थिक,जहिया हम अपन उमेरक बीसम पार कयने रही।समाजमे अपन वैभवकेँ देखयबाक दुर्लभ लालसा उधियाइत रहय।अपन बाँहि आ ठेहुनक बल पर दुनियाकेँ चलयबाक बात सदिखन सोचल करी। ओहि दिन मे हम एक टा मकान बनबबैत रही।

हम गाममे रहैत छी,तहियो गामेमे रहैत रही।

गाममे मकान बनयबा लेल आवश्यक सामग्रीसभ गाममे नहि भेटबाक कारणेंँ अनेक प्रकारक असुविधाकेँ अंगेजैत सामग्रीसभ शहरसँ आनल करी।

शहर से,जत' हम आयल-जायल करी,आ जे हमर गामसँ अस्सी किलोमीटर दूर छल,हमरा लेल बेस धांगल छल।

से,ओ शहर खिड़कीक ग्रिल बनयबा लेल एकदिन गेल रही।आ अपना जनतबेँ शहरक सभसँ पैघ सप्लायर्सकेँ सभ ग्रिलक नाम लिखाय,आर्डर क' आबि गेल रही।मुदा,आपूर्तिक निर्धारित तिथि पर जखन ग्रिल उठाबय गेल रही,निराश भेल रही।एके टा ग्रिल बनल छल,शेषमे हाथो नहि लागल छल।

ग्रिलक दोकानक मालिक तखन स्वयं नहि रहथि,जिनका हम आर्डर लिखबौने रही आ एडवांस कयने रही।ओहि दोकानक तखन उपस्थित तेँ एकमात्र स्टाफ,जे मिस्त्री छल,जे नमहर -नमहर फानवला करिया चश्मा पहिरने छल आ ग्रिल रेसि रहल छल,जकर उमेर बारह बर्खसँ बेसी नहि छलैक,जे दोकानक नौकर छल,ओकरासँ ओ एक टा खिड़कीक बनल ग्रिल ओजन करबाय लेने रही,ई कहि जे जखन आयल छी तंँ जे ग्रिल एक टा बनल अछि,उठौने जायब।आ दाम देबाकाल ओहि मिस्त्रीसँ बाजल रही,जे हमरा एखन थोड़ेक टाका घटैत अछि।सत्य ई छल,जे हमर संगमे तखन टाका प्रचुर छल, सप्लायर्सक देल निर्धारित तिथि पर सगर मकानक ग्रिल उठाबय जे गेल रही।

हम ओहि मिस्त्रीसंँ फूसि बाजल रही।दाममे अपन देल एडवांसक सेहो मिनहा करबाय लेने रही।ताहूमे छओ टाका कम देने रही।संगमे आर टाका नहि रहबाक लाथ लगौने रही।

मिस्त्री किशोर छल।सोझमतिया छल।हमर बात पर चट् विश्वास क' लेने छल।हमरा दिस ताकि खाली एतबैक टा बाजल छल,"बेस,ग्रिल ल' जाउ! लेकिन छओ टाका हमरा दे जायब।नै त मालिक हमर मजदूरी से काट लेत!"

हम अपन बुधियारी पर चकित भेल रही।
हम फेर ओत' कहियो नहि गेल रही।

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राति सपनामे देखायल ओ मिस्त्री। हम ओहि शहरक,जत' कहियो मकानक खिड़कीक ग्रिल बनयबा लेल पहिने गेल रही,रेलवे स्टेशनसँ बाहर भ' एक टा संगीक संग रिक्शा पर बैसि जखन विदाह होइत छी,पाछूसंँ ओ हमर पहिरल कुर्ताक खूट पकड़ि झिकैत अछि।हम पाछू उनटि तकैत छी,आ तत्काल ओहि मिस्त्रीकेँ देखि भयभीत भ' जाइत छी।मुदा,ओ अत्यन्त संयमित स्वरेँ एतबैक बजैत अछि,"मालिक,रिक्शा के भाड़ा नै होत,हम दे दूँ!"

आ हमर निन्न टूटि गेल ।
अखियासैत छी,घटनाकेँ तीस बर्ख भ' गेल अछि।

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हम ओ घटना बिसरल नहि छी।अपन बुधियारी पर चकित भेल कहियोक घटित ओ घटना हमरा मथि रहल अछि।
हम ग्रिलक ओहि मिस्त्रीसँ भेट कर' चाहैत छी,जकर हम छओ टाका धारने छी।
हम ओहि मिस्त्रीसँ क्षमा मांग' चाहैत छी।ओकर बकियौता चुकाय,ओकरासँ ऋणमुक्त होब' चाहैत छी।

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तीस बर्ख बाद ओत' गेल छी।
ग्रिलक दोकान नहि अछि।ओत' एक टा विशाल मकान बनल अछि।ओहि मकानक अगिला भागमे एक टा बेस नमहर दबाइ दोकान चलि रहल अछि,जकर काउंटर पर बेस प्रतिष्ठित सन देखाइत एक टा व्यक्ति बैसल छथि।

हम थकमकाइत ओहि प्रतिष्ठित सन देखाइत व्यक्तिसँ तीस बर्ख पूर्वक ओहिठामक ग्रिलक दोकानक मादे जिज्ञासा करैत छी।व्यक्ति ओ किछु नहि बजैत छथि।केवल संशय भरल नजरिसँ हमरा दिस ताक' लगैत छथि।

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हमरा मोन अछि,एकबेर प्रचण्ड रौदमे कामरेड श्रीनाथ मिश्रक संग बाजारमे कतहु जयबा लेल विदाह भेल रही। कामरेड नोन -तेलक एक टा अनचिनहार दोकानदारसँ बाजल छल,"तोँ किलोमे अथवा लीटरमे छत्ता बेचैत छहक?कनेकाल लेल हमरा छत्ता देबह,एक टा नहि दू टा? हमरा दुनूगोटेकेँ एखन कतहु जयबाक अछि ?"
दोकानदार हमरा दुनूगोटे दिस तखन संशय भरल नजरिसँ तकने रहय।
एखन दबाइ दोकानदारक थोड़ेक भिन्न,मुदा,बेसी घातक,संशय भरल वैह नजरि हम देखि रहल छी।

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हम ग्रिलक ओहि मिस्त्रीकेँ ताकि रहल छी।
मिस्त्रीसँ क्षमा मंगबा लेल मिस्त्रीकेँ ताकि रहल छी।
मिस्त्रीक बकियौता सधयबा लेल मिस्त्रीकेँ तकबामे हरान छी।
मिस्त्रीसँ जाधरि ऋणमुक्त नहि हैब,जीवनमे खैंक गड़ले रहत।

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मिस्त्री किशोर अछि।
मिस्त्री बारह बर्खक अछि।
मिस्त्री कारी रंगक हाफपैंट आ बुश्शर्ट पहिरने अछि।
मिस्त्रीक दुनू आँखिमे नवजात शिशुक निश्छलता छैक,जे निरभ्र आकाशक नीलिमासँ मिलैत छैक।

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डॉ. नारायणजी 




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