फगुआ: मिथिला-मैथिलक गर्व-पर्व - डॉ. कमल मोहन चुन्नू

महाप्रभु श्री चैतन्यदेव 
समस्त मानव समुदाय हेतु पाबनि-तिहारक एकटा विशेष महत्व अछि। एकटा खास तरहक जीवन शैलीमे दीर्घकाल धरि रचैत-बसैत लोकक मनः स्थितिमे एक प्रकारक श्रांति आबि जाइत छैक जे कि जीवनक आनो प्रभागके प्रभावित करय लगैत छैक। एहि श्रांति (थाकनि) के पुनर्गति प्रदान करबाक हेतु मानवक जीवन शैलीमे उत्सवक व्यवस्था धराओल गेल अछि। ई उत्सव आ कि पाबनि तेहार अपन विभिन्न रूप-प्रतिरूपसँ हमरा सभक जीवन आ ओकर गतिके समृद्ध करैए। उत्सव-पर्वादिक आनंदोत्सव आ विरहोत्सव नाम सँ दू टा मुख्य प्रभाग भ’ सकैए जकरा सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिक, शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि रूपमे सेहो पुनर्विभाजित कयल जा सकैए। फगुआ सेहो एकटा एहने उत्सव अछि जे अपन सांस्कृतिक- ऐतिहासिकादि महत्व लए एकटा प्रसिद्ध पर्व अछि। सब पाबनिक संग कोनो विशेष घटना अवश्ये रहैत अछि। फगुओक संग कएक रंगक घटना जुड़ल अछि। श्रीमद्भागवत महापुराणक सातम स्कन्धक जय-विजय, हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यपु, प्रह्लादिक कथासँ प्रारंभ होइत अछि जाहिमे हिरण्यकश्यपु अपन भगवद्भक्त पुत्र प्रह्लाद भगवद्विमुख नहि क’ सकला सन्ताँ ओकरा मृत्युदंड सुना, मारबाक कतेको यत्न करैत अछि मुदा ओ नहि मरैछ। बादमे हिरण्यकश्यपु अपन होलिका नामक बहिनके बजा, प्रह्लाद ओकरा कोरामे बैसाय, आबामे द’ दैत छथि। होलिका अपन प्राप्त वरदानक-विरुद्ध जरि क’ सुडडाह भ’ जाइछ मुदा प्रह्लाद जीबिते बहराइछ। फगुआके अहू परिप्रेक्ष्यमे देखल जाइछ। ब्रजक लठमार होली त’ प्रसिद्ध अछिये। ई भारतीय वर्षक वर्षान्त आ वर्षारम्भक महापर्व रूपमे सेहो मनाओल जाइछ जाहिमे रंग-भस्म (अबीर) धारण करबाक चलनसारि अदौसँ रहल अछि। वाग्देवी भगवती सरस्वतीक पृथ्वी पर प्रथमतः अवतरणक प्राकट्योत्सवमे बसंतपंचमीसँ फाल्गुनी पूर्णिमा धरि रंग-भस्म धारण (धूलि वन्दन) करबाक पौराणिक उत्सवक परम्परा सेहो फगुआक महत्वके सम्बलित करैत रहल अछि। मुदा होलिका-प्रह्लाद आ कि ब्रजक लठमारादिक परम्परासँ मिथिला-मैथिलके गर्व करबाक सुच्चा आ एकछत्र अधिकार नहि कायम होइत अछि। मिथिलावासी लए फगुआ उत्सवक मादे गर्व करबाक एकटा दोसर कथा अछि जे बेस महत्वपूर्ण अछि। 

भारतीय इतिहासमे ‘भक्ति-आन्दोलन’ कालक पहिल पाँतिक आन्दोलनी श्रीचैतन्य देव मैथिल-मिथिलाक संतान छलाह, तेँ हुनका ‘मैथिल’ कहबाक हमरा लोकनिक अधिकार कतहु-ककरो सँ बेसाहय नहि पड़त अपितु स्वतः सिद्ध अछि। एहि महामैथिलक जन्म 1486 ई-मे बंगालक नदिया जिलाक ‘नवद्वीप’ नामक गाममे फगुएक दिन भेल। ई शुद्धरूपेण हमरे लोकनिक सौभाग्य जे मिथिलेक माटि-पानिक परम्पराक मणि बंगालमे प्रकट भए सम्पूर्ण विश्वमे एकटा नव ऊर्जा भरलक। भक्त कवि रैदास, नामदेव, नानक, तुकाराम, वल्लभाचार्य लोकनिक समकालीन श्रीचैतन्य देवक पूर्वज मैथिल छलाह से अंधराठाढ़ी सँ प्राप्त अभिलेख सँ प्रमाणित भ’ चुकल अछि।1 दोसर प्रमाण जे श्रीचैतन्य देवक नामोपाधि ‘मिश्र’ छलनि। हिनक पिता पं- जगन्नाथ मिश्र, पितामह उपेन्द्र मिश्र, प्रपितामह मधुकर मिश्र आदि। ‘मिश्र’ उपाधि बंगालक आ कि बंगाली ब्राह्मणक नहि अछि जहिना चटर्जी, मुखर्जी, बनर्जी उपाधि मिथिला किंवा मैथिलक नहि। ‘मिश्र’ उपाधिधारी मैथिल ब्राह्मण लोकनिक उल्लेख तत्कालीन श्रीहट्ट (सिलहट, असम) मे सेहो अभरैत अछि। छठम शताब्दीक निधनपुर ताम्र-लेखमे सेहो ई अल्लिखित अछि।2 अंधराठाढ़ीक अभिलेख आ श्रीहट्टक अभिलेखक मिलान कयला सँ ई अवश्य प्रमाणित होइत अछि जे ई पंडित-दार्शनिक-ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण लोकनि श्रीहट्टक शासकक आमंत्रण पर बजाओल गेल छलाह। राजाक उचिती-मिनती पर ओत्तहि बसियो गेलाह। श्रीचैतन्य देवक प्रपितामह श्रीमधुकर मिश्रक उल्लेख ओत्तहि भेटैत अछि।3 मधुकर मिश्रक माझिल पुत्र उपेन्द्र मिश्र जनिक सात पुत्रमे पं- जगन्नाथ मिश्र तेसर रहथि। तहिया एमहर मिथिला आ ओमहर नवद्वीप सौंसे भारतमे विद्याक केन्द्र रूपमे प्रतिष्ठित छल। मिथिलामे पक्षधर मिश्र आ श्रीहरि मिश्र (विद्यापतिक गुरुजन) प्रसिद्ध नैयायिक रहथि त’ ओमहर नवद्वीपमे गंगादास आ नीलाम्बर मिश्र सन धुरंधर नैयायिक रहथि। मैथिल पंडित लोकनि बंगाली छात्र लोकनिके ग्रंथ ल’ जाय सँ रोकि देने रहथि। तेँ मिथिलाक संग नवद्वीपक विद्यार्जनी प्रतिस्पर्धा सुविख्यात छल। तहियाक विद्वत् समाजमे न्यायशास्त्रक अध्ययन-अध्यापन विद्वान होयबाक एकटा प्रमाण-पत्र सन छल। तेँ उपेन्द्र मिश्र अपन पुत्र जगन्नाथ मिश्र के न्यायशास्त्रक अध्ययन हेतु विद्वत्प्रवर श्रीनीलाम्बर मिश्र (चक्रवर्ती) लग नवद्वीप पठाओल, जतय ओ अध्ययनोपरांत ‘पुरन्दर’क उपाधि (न्यायशास्त्रक अध्येता हेतु सर्वश्रेष्ठ उपाधि) प्राप्त कयल। एही सँ अभिभूत भ’ श्रीनीलाम्बर मिश्र (चक्रवर्ती) अपन पुत्री ‘शची’क विवाह हिनका सँ कराओल आ हिनका लोकनिक रहबाक स्थायी व्यवस्था नवद्वीपे मे क’ देल। एही शची देवीक गर्भ सँ एहि महामैथिल श्रीचैतन्य देवक जन्म भेल।

तहिया दिल्लीक गद्दी पर सिकन्दर लोदीक आधिपत्य छल। 28 वर्षक बाद इब्राहीम लोदी प्रभुत्वमे आयल। मुदा ताहिसँ पूर्वहि मथुरा-वृन्दावनक समस्त देवमन्दिर ध्वस्त क’ देल गेल छल। तहियाक बंगाल सेहो बेस अराजक भ’ चुकल छल। कपट-षड्यंत्र-व्यभिचार-नरहत्यादि रौद्ररूप धारण कयने छल। तत्कालीन विश्वमे कएक प्रकारक घटना घटि रहल छल। 1485 ई- सँ पाश्चात्य इतिहासकार वर्तमान युगक प्रारंभ गछने छथि। 1485 ई- मे इंगलैंड मे हेनरी सप्तम सत्तारूढ़ भ’ रहल छलाह। 1487 ई- मे भारत हेतु समुद्री मार्गक अनुसंधान कयल गेल आ जहिया वास्कोडिगामा भारत अयलाह तहिया श्री चैतन्यदेव 12 वर्षक रहथि। मार्टिन लूथर ईसाइ धर्मक सुधार हेतु झंडा बुलंद क’ रहल छलाह, मुद्रण यंत्रक आविष्कार भेल छल, पृथ्वीक पश्चिमी गोलार्धक खोज भेल छल। अभिप्राय जे एहने सन विशिष्ट वैश्विक परिघटनाक कालखंडमे श्रीचैतन्य देवक आविर्भाव एहिमे नव अध्याय जोड़ैत अछि जे कि मिथिला-मैथिलक लेल पर्याप्त गर्वक विषय अछि।

आइयो मिथिलामे एकटा प्रथा सन अछि जे जँ कोनहु स्त्रीक कोखि नष्ट भ’ गेल होइक, बच्चा सोइरी आ कि शैशवावस्थामे मरि गेल हो किंवा जन्मकालिक कोनहु प्रकारक अनहोनी सँ ग्रस्त हो त’ बादक जनमल बच्चाक सेवा-वारीमे चिलकाउर बड़ सतर्क रहैत छथि, संगहि जानि-सुमानि क’ ओकरा खरपहा नाम राखि देल जाइछ ई सोचि जे खरपहा नामबलाके भगवान अल्पायुमे नहि ल’ जाइत छथिन। एहि क्रममे लोक अपने जनमल बच्चा के आनक हाथे बेची लेबाक सन ‘बिध’ सेहो करैए। ई मैथिल परम्परा सेहो छैक। चैतन्य देवक अग्रज ‘विश्वरूप’ अल्पायुएमे ‘साधु’ बनि धर-दुआरि तेजि देने रहथि। ताहि सोगे पंडित-दम्पति बड़ दुखित रहल करथि। तेँ चैतन्य देवक जन्मोपरांत हिनका लए एकटा तितहा नामक चयन भेल - ‘निमाइ’। हिनक जन्म गृह एकटा नीमक गाछक तरमे छल ताहू कारणे ‘निभाइ’ नाम पंडित-दम्पतिक धारणाक अनुकूले लगलनि। माता शची हिनक बेसी शिक्षा-दीक्षा पक्षधर नहि रहथिन मुदा पिताक स’ह पाबि आ अपन विशिष्ट प्रतिभाक बले किछुए वर्षमे ओ न्यायशास्त्रक आचार्य भ’ गेलाह। वाक्-युद्ध आ शास्त्रर्थ मे मोन लगैत छलनि। न्याय सूत्रक हिनक नव व्याख्या तत्कालीन पंडित-नैयायिक लोकनि के चकविदोर लगा दैत छल। किछु वर्ष धरि त’ ई न्याय आ व्याकरणक अध्यापनो कयल आ ताही क्रममे दिग्विजयी पंडित केशव कश्मीरीके शास्त्रर्थ मे परास्तो कयल। मुदा पिताक अकाल परलोक गमन सँ परिवारक भार हिनकहि पर आबि गेलनि। पिताक श्राद्ध करबा लए 1508 ई- मे श्रीचैतन्य देव गया (बिहार) आयल रहथि। एहि यात्रक प्रसंग ‘जानकीक नगरी’ जयबाक इच्छा सेहो प्रकट कयने रहथि। श्राद्धादिक उपरांत एतहि ओ श्रीईश्वरी पुरी नामक कृष्णोपासक संत सँ कृष्णमंत्रक दीक्षा ग्रहण कयल। श्रीचैतन्य देवक चरण-चिह्न मंदिर पटनाक महात्मा गाँधी सेतुक नीचाँमे आइयो विद्यमान अछि जे हिनक गया आगमनक कथा जोगओने अछि। श्रीचैतन्य देवक जीवनमे हिनक गया यात्रक विशेष महत्व अछि, कारण एतहि ओ दीक्षित भेलाह आ एकटा चपल निभाइ एतहि सँ गंभीर सन देखाय लगलाह। श्रीकृष्णनाम संकीर्तन ‘हरे कृष्ण---हरे राम-------’ के अपन वैश्विक दायित्वक निर्वहनमे माध्यम रूपमे सम्मिलित करबाक दृढ़ निश्चय एतहि कयलनि।

तत्कालीन बंगालमे कीर्तन करब, ढोल-मृदंग- करतालादि ल’ क’ समूह मे नाचब-गायब राजाज्ञा द्वारा त’ वर्जित छले, सनातनधर्मी साधु-संतक एकटा खास भाग सेहो एकरा धर्मविरुद्ध करारि देने छल।चैतन्य देवक एहि नाम-संकीर्तनक विरुद्ध सब गोटे मिलि काजी (बादशाह द्वारा नियुक्त) लग नालिस कयलक। काजीक सिपाही सभ आबि क’ किरतनियाँ सभक झालि छीनि लेलक, मृदंग फोडि़ देलक, मुख्य संकीर्तनकारी श्रीपाद नित्यानंद आ श्रीहरिदासक कान-कपाड़ सेहो फोडि़ देलक। संकीर्तनक बहन्ने लोक सब ईश-भजन त’ करिते छल, मुदा एकर एकटा आर महत्वपूर्ण पक्ष ई छल जे लोक सब एहि नाम पर एकठाम जुटि अपन सुख-दुख सेहो बतियाइत छल, अभाव आ सहयोगक बात - व्यवस्था होइत छल, शास्त्र-विद्यादिक आदान-प्रदान होइत छल, समाजक दशा-दिशा पर चिंता आ चिन्तन होइत छल। नाम संकीर्तनक विरुद्ध काजीक आदेश अयलासँ एहि समस्त व्यवस्था आ लोकतांत्रिक विशिष्टता पर आसन्न संकटक संभावना के अकानि श्रीचैतन्य देव शीध्रहि नदिया नगरक समस्त जनताके एकस्वरसँ आह्वान कयल जे ओ लोकनि अपन-अपन खोल (चाँदखोल-बंगालक संकीर्तन आ संगीतक एकटा विशिष्ट तालवाद्य)-करताल प्रभृत वाद्ययंत्रक संग संकीर्तन-मण्डली बना क’ नवद्वीपमे एकत्र होअय। तहियाक नदिया नगरक जनसंख्या अझुका कलकत्ता सँ कम नहि रहल होयत।4 संकीर्तन सम्राट श्रीनिमाइ पंडित (श्रीचैतन्य देवक अध्यापकीय नाम)क संकीर्तन वाहिनी चलल चाँदकाजीक सशस्त्र सेनाक संग निःशस्त्र लड़य लेल। राजसत्ताक विरुद्ध श्रीचैतन्य देवक ई पहिल संघर्ष छल। एखन हिनक ‘बहिक्रम’ मात्र 19-20 वर्षक छल। जनसमूहक महासागर देखि चाँदकाजी हारि मानलक आ ओतहि गछलक जे ओ स्वयं आ ओकर वंशज सेहो एहि नाम-संकीर्तनक कहियो विरोध नहि करत। आइयो नवद्वीपक चाँदकाजीक वंशज हिन्दूक ‘नाम-संकीर्तन’मे तन-मन-धन सँ सहयोग करैत अछि। हिन्दू - वैष्णवजन आइयो नवद्वीप स्थित चाँदकाजीक समाधिक सेवा-सुरक्षामे लागल भेटैत छथि। एहने सन मारिते रास विशिष्ट सामाजिक शैक्षिक-आर्थिक-सांस्कृतिक-दार्शनिक अवदानक कारणे श्रीचैतन्य देव भक्ति कालक अग्रणी महापुरुष भ’ सकल छथि। नाम-संकीर्तनके अपन आन्दोलनक माध्यम बना एकरा विराट फलक पर उपलब्ध करयबाक कारणे हिनका ‘संकीर्तनैक पितरौ’ सेहो कहल जाइत छनि।

24 वर्षक उमेरमे (1510 ई- मे) श्रीचैतन्यदेव एकटा केशव भारती नामक निष्किंचन साधु सँ सन्यास-दीक्षा ग्रहण क’ परिव्रजनमे निकलि गेलाह जाहि क्रममे उड़ीसाक महाराज श्रीप्रतापरुद्र, नैयायिक वासुदेव सार्वभौम भट्टाचार्य लोकनिके अपन सान्निध्य देल। दक्षिणक यात्रमे श्रीराय रामानन्द आ श्री वेंकट भट्ट सन दार्शनिक विद्वान संग भेँट-वार्ता भेलनि जाहि प्रसंगक श्रीचैतन्य देवक दर्शन ‘अचिन्त्यभेदाभेदवाद’क संदर्भमे बेस महत्व अछि जाहिमे जीव-जगत-ब्रह्म-ईश्वर-साध्य-साधन-पुरुषार्थादि विषय पर विशद आ गंभीर चर्चा भेल अछि।5  1514 ई- मे श्रीचैतन्य देव श्रीवृन्दावन धामक पहिल खेप यात्र कयल जाहि क्रममे श्रीरूप गोस्वामी, श्रीसनातन गोस्वामी, श्रीजीवगोस्वामी सन दार्शनिक-वैष्णव विद्वानक व्यक्तित्व-निर्माण कयल जे कि अपन-अपन योग्यता-क्षमतानुसार एहि दर्शन आ साहित्य के भक्तिरसामृतसिन्धु, उज्जवलनीलमणि, वृहद्भगवतामृत, षट्संदर्भ सन गंभीर ग्रंथरत्न देल जकरा प्रति समस्त भारतीय वाघ्मय ऋणी रहत, कारण हिनके लोकनिक प्रसादात ‘भक्ति’के दशम रसक रूपमे स्थापना आ व्याप्ति भेटलैक। एकर एकमात्र सूत्रधार छलाह श्रीचैतन्य देव।

अपन पहिलुके वृन्दावन-यात्रक क्रममे लुप्त-ध्वस्त मथुरा-वृन्दावनक जीर्णोद्धार हेतु श्रीचैतन्य देव एकटा विराट अभियान चलाओल आ एहि लेल अपन प्रिय परिकर श्रीलोकनाथ गोस्वामी आ श्रीभूगर्भ गोस्वामीके वृन्दावन पठाओल। तदुपरांत श्रीरूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट, रघुनाथदास, रघुनाथ भट्ट (छय गोस्वामी सँ प्रसिद्ध) लोकनि एकाएकी वृन्दावन आबि श्रीचैतन्य देवक एहि महाभियानके गति द’ क’ वृन्दावन के भक्ति-आन्दोलनक महान केन्द्रक रूपमे स्थापित कयल आ व्रज-वृन्दावनक नव-उज्जीवन कयल। हिनका लोकनिक अतिरिक्त श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी, प्रबोधानन्द सरस्वती आ नारायण भट्ट लोकनि सेहो भक्ति ग्रंथक रचनामे महत्वपूर्ण योगदान कयल। भक्ति-साहित्यक जतबा रचना एहि कालमे भेल ततबा पहिले कहियो नहि गेल छल।6

वृन्दावनमे देवालय सभक निर्माण सेहो सर्वप्रथम श्रीचैतन्य देव आ हुनक परिकर द्वारा भेल अछि।7 गोवर्धन स्थित राधाकुण्ड आ श्यामकुण्डक खोज सेहो हिनकहि द्वारा भेल। वृन्दावनक प्रसिद्ध सप्तदेवालयक भगवान चैतन्ये सम्प्रदायक आचार्य लोकनि द्वारा स्थापित अछि। दक्षिण यात्रक क्रममे ‘ब्रह्म संहिता’ (5म अध्याय) आ विल्वमंगल रचित ‘कृष्णकर्णामृत’क प्रति संग आनब आ एकरा बहुमुल्य सम्पत्ति बूझि सदति अपना संग रखबाक अध्येता आ ग्रंथस्नेही प्रवृत्ति सेहो हिनक मैथिलत्वके पुष्ट करैए। अभिप्राय ई जे आजुक वृन्दावन सेहो एहिये महामना मैथिलसंतान श्रीचैतन्य देवक महावदानक प्रतिफल अछि।

अपन 6-7 वर्षक परिव्रजन मे श्रीचैतन्य देव यत्र-तत्र भक्ति बीजक वपन-अंकुरण-सिंचनादिक कार्य कयल आ 1516 ई- मे पुरी चलि गेलाह। अपन शेष जीवन श्रीजगन्नाथजीक शरणमे श्रीकृष्णप्रेम सँ भावित भ’ क’ बिताओल आ 1534 ई- मे 48 वर्षक अवस्थामे श्रीजगन्नाथ जीमे लीन भ’ गेलाह। उडि़या कवि आ श्रीचैतन्य देवक समकालीन श्रीअच्युतानन्द अपन ‘शून्य संहिता’ नामक ग्रंथमे श्रीचैतन्य देवक अंतर्धान होयबाक घटनाके विस्तारसँ लिखने छथि। लीन होयबाक एहि घटनाक समर्थन परवर्तीकालक साहित्य यथा-चैतन्य भागवत (ईश्वर दास) चैतन्य मंगल (लोचन दास) प्रभृति प्रामाणिक ग्रंथ सेहो कयने अछि। विद्यापतिक पद-रचनाक श्रवण-मनन-आत्मविभोरक घटना हिनक स्वभूमि प्रेम दिस त’ संकेत करिते अछि, श्रीविष्णु पुरीजी (तरौनीक उद्भट विद्वान आ साधु) संगक हिनक पत्रचार सेहो एकरा पुष्टे करैए जाहिमे एकटा माला पठयबाक श्रीचैतन्य देवक निवेदन सुविख्यात अछि। पत्र आ निवेदनक उत्तरमे श्रीपुरी महाशय 13 विचरण (अध्याय)मे नवधा भक्तिक व्याख्या करैत ‘भक्तिरत्नावली’ नामक ग्रंथ पठा देल। श्रीचैतन्य देव अलौकिक आनंदक संग एकरा शिरोधार्य करैत श्रीपुरी महाशय के स्वजन घोषित कय अपन निवेदनक निजगुज अर्थ लगा तकर एहि विशिष्ट प्रकारक पूर्ति हेतु आभारो प्रकट कयने छलखिन।8 चैतन्य साहित्यक परवर्ती रचनाकार लोकनि अधिकांश प्रामाणिक ग्रंथ रचना ‘ब्रजबुली’मे कयने छथि जकर भाषा वैज्ञानिक प्रकृति आ सामीप्य मैथिली संग बेसीए अछि। श्रीचैतन्य देवक विवाह विष्णुप्रियाजी सँ भेल छलनि। ई राज पंडित श्रीसनातन मिश्रक सुपुत्री छलीह, मैथिल मूलक छलीह। स्वजातिक-स्वकोटिक मैथिल ब्राह्मण संग ई वैवाहिक सम्बन्ध सेहो हिनका लोकनिक ‘मैथिले मूल’ के दृढ़ करैए।

मैथिली साहित्यमे एहि महामना मैथिलके बड़ अनठाओल गेलैक। मैथिलीमे एकटा नाटक ‘श्रीचैतन्य महाप्रभु’ (प्रो- योगानन्द चौधरी) आ एकटा महाकाव्य श्रीचैतन्य चन्द्रायण (श्रीरामचन्द्र मिश्र ‘मधुकर) उपलब्ध अछि। चैतन्य चन्द्रायणक प्रामाणिक रचनात्मकता असंदिग्ध अछि कारण एहिमे मारिते रास ऐतिहासिक तथ्यक समावेश भेल अछि। 1971-72 ई- मे भेल विदेश्वर यज्ञक क्रममे एकर रचना भेल आ पं- श्रीरामनन्दन मिश्र (जगतपुर, मधुबनी)क सत्प्रयास सँ आ बड़ी महारानी, दरभंगा राजक आर्थिक सहयोगसँ जीव सेवा संघ (बेनीपट्टी, मधुबनी) एकर प्रकाशन सेहो कयलक। विदेश्वरक ई यज्ञ मिथिलामे श्रीचैतन्यमताश्रित कृष्णभक्ति आ भक्तक प्रचार-प्रसारक सुपरिणाम छल। चारूकात शैव-शाक्तक बौद्धिक समाज आ ताहि बीचमे ई वैष्णव आयोजन जकरा कि दरभंगा राजक सोझा-सोझी समर्थन प्राप्त छलैक, 1971-72 ई- मे ई एकटा पैघ घटना सन छल। एहिमे श्रीमद्भागवत कथा, रासलीला, आध्यात्मिक प्रवचन, संत-सम्मेलन, नाम-संकीर्तनादिक गदेल मुदा सैंतल व्यवस्था छलैक। कएक टा विशिष्ट घटना सेहो एहि कालखंडमे घटल जाहिमे एकटा घटनाक त’ ऐतिहासिक महत्वक छल जे बड़ी महारानी (राज दरभंगा) 1969 ई- मे श्रीरासबिहारी दास गोस्वामीजी (बेनीपट्टी) सन वैष्णव आ परमवीतरागी संतसँ श्रीचैतन्यमताश्रित कृष्णोपासनाक मार्गमे दीक्षिता भेलीह। एहि महावसरक उपलक्ष्यमे बड़ी महारानी अष्टयाम नाम संकीर्तनक आलावे आवालब्रह्मचारिणी वैष्णव दासीजी (बहिनजी, बेनीपट्टी) सन वैष्णवी-विदूषी कथावाचिका सँ श्रीमद्भागवतक कथा सेहो सुनने रहथि। एही आध्यात्मिक परिवेशमे श्रीचैतन्य चन्द्रायणक रचना भेल छल। खाँटी मैथिली भाषामे रचल लीला-गाथा (महाकाव्य)क काव्य-सौन्दर्य आ प्रामाणिकता श्रीचैतन्य देवक मैथिलत्वक परिप्रेक्ष्यमे कएक अर्थमे महत्वपूर्ण आ प्रशंसनीय अछि। चैतन्य देवक स्वजन होयबा सन गर्व-बोध सँ अभिभूत श्रीमधुकरजी सम्पूर्ण मैथिल-मनोयोग सँ एहि महाकाव्यके रचने छथि। श्रीचैतन्य देवक

सोहर:-

श्रीशची मैया अंगना, बालक गौर बदना, 
जनम लेल रे, हरि जनमल रे। 

बधावा गीत:- 

माँगै लय अएलहुँ बघावा हे ! मिथिला के पमरिया । 
युग-युग जिबओ निमाइ हे ! मोर लागौ उमरिया ।। 
नहि लेबै हम हाथी ओ घोड़ा, 
राखू फराके असर्फीक तोड़ा, 
हमहूँ पमरिया छी बाबाके गामक, 
माँगय ने अएलहुँ भिखरिया हे, मिथिलाके पमरिया ।। 

तहिना छठिहारक गीत, चैतावर, चुमाओन, लोरी, मुड़नक गीत, उपनयनक गीत प्रभृत वैशिष्टय एहि ग्रंथक उत्तम साहित्यिक पक्षमे सँ अछि। तथापि मैथिलीक इतिहासकार-समालोचक लोकनि द्वारा एहि ग्रंथक महत्वके अनठायब सेहो मैथिल-स्वभावक अनुकूले बूझैत छी। मैथिलीक महाकाव्य पर पी-एच-डी- उपाधि ल’ पटना विश्वविद्यालय मे प्रोफेसरी कयनिहार महामहिमके सेहो ई महाकाव्य नहि अभरलनि जखन कि एकर रचना-क्रमक ऐतिहासिकता एतेक सक्कत आ बुलंद रहल अछि।

श्रीचैतन्य देवक एहने-एहने विशिष्ट अवदानक कारणे हिनक जन्म-तिथि फगुआ (फागुनक पूर्णिमा) मैथिल-मिथिलाक लेल एकटा गर्व-पर्व अछि। सम्पूर्ण विश्वमे हिनक जयंती महोत्सव मनाओल जाइछ। ताहि अर्थमे मिथिले कने पछुआयल सन लगैए। यद्यापि कतहु-कतहु ई महोत्सव मनाओलो जाइछ, विशेष क’ चैतन्य-सम्प्रदायी कृष्णोपासक लोकनिक बीच, मुदा एहिठाम हिनक आध्यात्मिक-दार्शनिक अवदानक मोजर बेसी अछि। हिनक मिथिला अयबाक सेहन्ता त’ प्रत्यक्षतः पूर्ण नहि भ’ सकल रहनि मुदा हिनका द्वारा प्रवर्तित दर्शन-उपासना-वैष्णवतादिक प्रचार-प्रसार मिथिलेक किछु वीतरागी संत लोकनि खूबे कयलनि अछि। मिथिलाके पहिल-पहिल श्रीचैतन्य देवक नाम-संकीर्तन- ‘हरेकृष्ण---- हरे राम---’ सँ परिचय करौनिहार एकटा बंगाली विद्वान-वैष्णव-दार्शनिक संत श्रीपरमानंद दास गोस्वामी (बंगाली बाबा) अपन संन्यासोपरांत जीवनक लगभग 60 वर्ष चैतन्य देवक ओही मिथिला-गमनक अपूर्ण सेहन्ताक यथासंभव पूर्तिक पाछाँ लगा आजीवन मिथिलामे घूमि-घूमि नाम-संकीर्तनक प्रचार-प्रसार कयल। फलस्वरूप मिथिलो मे आब श्रीचैतन्य देवक भावधारानुकूल आयोजनक संख्यामे वृद्धि भेल अछि तथापि हुनका मिथिला-मैथिल सँ जोडि़ तदजन्य भावसँ गौरवान्वित भ’ एहि आयोजन सबके मनायब शेषे अछि जाहिसँ काल्हि समस्त विश्वके चिकरि क’ कहि सकी जे ई महामानव-महामैथिल श्रीचैतन्य देव हमरहु छलाह, हमरहि छलाह।

संदर्भ-

1- श्रीचैतन्य चन्द्रायण - श्रीरामचन्द्र मिश्र ‘मधुकर’
2- मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहास - प्रो- राधाकृष्ण चौधरी
3- श्रीचैतन्य देव - श्रीसुन्दरानन्द विद्याविनोद
4- श्रीचैतन्य मत - डॉ- अवधबिहारी लाल कपूर
5- श्रीचैतन्य चरितामृत (मध्य लीला)-श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी
6- ब्रजके रासिकाचार्य - डॉ- अवधबिहारी लाल कपूर
7- Mathura : A District Memoir (3rd edition)
8- श्रीचैतन्य चरितामृत (अंतलीला) - श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी

डॉ. कमल मोहन चुन्नू

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