पटना से सुबह छह बजे ‘ प्रसाद ’ के ‘ कंकाल ’ से यात्रा शुरू होती है। दोपहर को आसनसोल पहुंचता हूँ , भोजन- आराम-गप्पें-निद्रा और एक दिन खत्म । सोचता हूँ कि एक दिन की यात्रा तो खत्म हो गई और अपने गंतव्य के निकट पहुंच भी चुका हूँ आज लेकिन जीवन की इस यात्रा में कब पहुँच सकूँगा अपने गंतव्य पे । क्या कभी पहुंच भी पाऊंगा ? सहसा बच्चन याद आते हैं- “ यह प्रश्न…
आगू पढू...
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