बालमुकुन्द समकालीन मैथिली कविताक न'ब खेपक कवि छथि। हुनक कविता मे एक दिस अपन निर्माता समय सँ एकटा खास तरहेँ संवाद आ सम्बन्ध स्थापित करबाक चेष्टा सहजहि देखार दैत अछि त' दोसर दिस ओहि प्रदत्त समय के प्रश्नांकित करबाक कवियोचित आचरण सेहो देखल जा सकैत अछि। निम्नलिखित कविता सब मे एकैसम शताब्दीक मारक यथार्थक बीच मे बाझल एवं आजुक जीवन-स्थितिक भयावह परिदृश्य सँ विचलित य…
आगू पढू...1. इयह थिक जीवन ! सजल साजल कनियाँ कोबर टुह-टुह छलैक अहिबात पुरहर आ डाला भरल जरैत अहिबातक अखंड दीप ओकरा बिलहबाक लेल नहि छलैक बिधकरीक हाथ शुद्ध किएक त' चतुर्थिए दिन मरि गेलथि नुनू कक्का कन्ना-रोहट पसरल चारूकात मेहिया बड़द जकाँ ठाढ़ नबका वर मनक उद्वेग ओहने जागृत जेना खेतिहर केँ कोदरिकट्टा मेघ देखि वृष्टिक होइत छनि संतोष एक दिस मृत्युक सत्यता आ जीवनक दोसर सत्यताक ओरिया…
आगू पढू...1. बात की छै जे एना अथबल करैए सत्य सँ परिचय किए बेकल करैए आर किछु कहितय किओ तँ मानि लैतहुँ ई कोना मानी जे जिनगी छल करैए नहि चिता भेटलै सड़क पर लाश भिजलै आगि केर जे काज छै से जल करैए मरि चुकल विश्वास धरि मानी कोना हम राति-दिन नित माथ पर नाचल करैए भ्रम छलय जे दूर भ' बिसरा सकत ओ पैसि सपना मे मुदा पागल करैए अ'ढ़ मे जे हँसि रहल से आबि सोझा जानि नहि झुट्ठे किए कानल क…
आगू पढू...भगत जी फेर देखि लेलनि। पछिलो यात्रा मे देखि लेने छलाह आ बड़ आग्रहक संग बुकिंग काउण्टर , ज त ' ओ बैसैत छलाह , ल ' गेलाह। ओहू दिन देखि लेलनि। हम प्लेटफॉर्म पर डाँड़ मोड़नहि रही कि टोकि देलनि , " अहाँक टेन बीस मिनट लेट अछि। चलू भीतरे। " हम सोचलहु़ँ , भने कहैत छथि। एहि एक बजे राति मे प्लेटफॉर्म पर…
आगू पढू...
सोशल मिडिया